त꣡मी꣢डिष्व꣣ यो꣢ अ꣣र्चि꣢षा꣣ व꣢ना꣣ वि꣡श्वा꣢ परि꣣ष्व꣡ज꣢त् । कृ꣣ष्णा꣢ कृ꣣णो꣡ति꣢ जि꣣ह्व꣡या꣢ ॥११४९॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)तमीडिष्व यो अर्चिषा वना विश्वा परिष्वजत् । कृष्णा कृणोति जिह्वया ॥११४९॥
त꣢म् । ई꣣डिष्व । यः꣢ । अ꣣र्चि꣡षा꣢ । व꣡ना꣢꣯ । वि꣡श्वा꣢꣯ । प꣣रिष्व꣡ज꣢त् । प꣣रि । स्व꣡ज꣢꣯त् । कृ꣣ष्णा꣢ । कृ꣣णो꣡ति꣢ । जि꣣ह्व꣡या꣢ ॥११४९॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
प्रथम मन्त्र में भौतिक अग्नि के वर्णन द्वारा परमात्मा की महिमा प्रकट की गयी है।
हे मनुष्य ! तू (तम्) उस अग्नि के (ईडिष्व) गुणों का वर्णन कर, (यः) जो (अर्चिषा) दीप्ति से (विश्वा वना) सब वनों का (परिष्वजत्) आलिङ्गन करता है और (जिह्वया) ज्वाला से उन वनों को (कृष्णा) काले (करोति) करता है ॥१॥
जो यह भौतिक अग्नि विशाल वनों को जलाता हुआ उन्हें कृष्ण वर्णवाला तथा घास, वनस्पति आदि के अङ्कुरित होने योग्य करता है, वह सब महिमा परमेश्वर की ही है ॥१॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
तत्रादौ भौतिकाग्निवर्णनमुखेन परमात्ममहिमानमाचष्टे।
हे मनुष्य ! त्वम् (तम्) अग्निम् (ईडिष्व) गुणवर्णनेन स्तुहि, (यः) अग्निः (अर्चिषा) रोचिषा (विश्वा वना) विश्वानि वनानि (परिष्वजत्) परिष्वजति आलिङ्गति, अपि च (जिह्वया) ज्वालया, तानि वनानि (कृष्णा) कृष्णानि (करोति) सम्पादयति ॥१॥२
योऽयं भौतिकाग्निर्विशालानि वनानि दहन् कृष्णवर्णानि शष्पवनस्पत्यादिप्ररोहयोग्यानि च करोति स सर्वोऽपि महिमा परमेश्वरस्यैव विद्यते ॥१॥