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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: जमदग्निर्भार्गवः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

ए꣣ते꣡ सोमा꣢꣯ असृक्षत गृणा꣣नाः꣡ शव꣢꣯से म꣣हे꣢ । म꣣दि꣡न्त꣢मस्य꣣ धा꣡र꣢या ॥१०६१॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

एते सोमा असृक्षत गृणानाः शवसे महे । मदिन्तमस्य धारया ॥१०६१॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए꣣ते꣢ । सो꣡माः꣢꣯ । अ꣢सृक्षत । गृणानाः꣢ । श꣡व꣢꣯से । म꣣हे꣢ । म꣣दि꣡न्त꣢मस्य । धा꣡र꣢꣯या ॥१०६१॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1061 | (कौथोम) 4 » 1 » 6 » 1 | (रानायाणीय) 7 » 2 » 3 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम मन्त्र में गुरुओं का वर्णन है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(एते) ये (गृणानाः) शास्त्रों का उपदेश करते हुए (सोमाः) विद्यारस के भण्डार गुरुजन ! (महे शवसे) महान् बल के लिए (मदिन्तमस्य) अत्यधिक आनन्ददायक ज्ञान की (धारया) धारा के साथ (असृक्षत) विद्यादान कर रहे हैं ॥१॥

भावार्थभाषाः -

योग्य गुरुओं से ग्रहण की गयी विद्या शिष्यों की कीर्त्ति करनेवाली होती है ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्रादौ गुरवो वर्ण्यन्ते।

पदार्थान्वयभाषाः -

(एते) इमे (गृणानाः) शास्त्राण्युपदिशन्तः (सोमाः) विद्यारसागाराः गुरवः (महे शवसे) महते बलाय (मदिन्तमस्य) आनन्दयितृतमस्य ज्ञानस्य (धारया) प्रवाहसन्तत्या (असृक्षत) विद्यादानं कुर्वन्ति ॥१॥

भावार्थभाषाः -

योग्येभ्यो गुरुभ्यो गृहीता विद्या शिष्याणां कीर्तिकरी जायते ॥१॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।६२।२२, ‘शवसे’ इत्यत्र ‘श्रव॑से’।