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प्र काव्य॑मु॒शने॑व ब्रुवा॒णो दे॒वो दे॒वानां॒ जनि॑मा विवक्ति । महि॑व्रत॒: शुचि॑बन्धुः पाव॒कः प॒दा व॑रा॒हो अ॒भ्ये॑ति॒ रेभ॑न् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra kāvyam uśaneva bruvāṇo devo devānāṁ janimā vivakti | mahivrataḥ śucibandhuḥ pāvakaḥ padā varāho abhy eti rebhan ||

पद पाठ

प्र । काव्य॑म् । उ॒शना॑ऽइव । ब्रु॒वा॒णः । दे॒वः । दे॒वाना॑म् । जनि॑म । वि॒व॒क्ति॒ । महि॑ऽव्रतः । शुचि॑ऽबन्धुः । पा॒व॒कः । प॒दा । व॒रा॒हः । अ॒भि । ए॒ति॒ । रेभ॑न् ॥ ९.९७.७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:97» मन्त्र:7 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:7


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवानाम्) विद्वानों के मध्य में (देवः) जो मुख्य विद्वान् है, वह (उशनेव काव्यं, ब्रुवाणः) कान्तिशील विद्वान् के समान सन्दर्भ रचना को करनेवाला विद्वान् (जनिम विवक्ति) अनेक जन्म-जन्मान्तरों का वर्णन करता है। (महिव्रतः) बड़े व्रत को धारण करनेवाला (शुचिबन्धुः) पवित्रता का बन्धु (पावकः) सबको पवित्र करनेवाला है (वराहः) “वरं च तदहश्चेति वराहः, वराहो विद्यतेऽस्य स वराहः” जिसका श्रेष्ठ तेज हो, उसका नाम यहाँ वराह है। उक्त प्रकार का विद्वान् (रेभन्) सुन्दर उपदेश करता हुआ (पदाऽभ्येति) सन्मार्ग द्वारा आकर उपदेश करता है ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो उत्तम विद्वान् हैं, वे अपनी रचना द्वारा पुनर्जन्मादि सिद्धान्तों का वर्णन करते हैं। वराह शब्द यहाँ सर्वोपरि तेजस्वी विद्वान् के लिये आया है। सायणाचार्य्य कहते हैं कि पाँव से भूमि को खोदता हुआ वराह जिस प्रकार शब्द करता है, इसी प्रकार सोम भी शब्द करता हुआ आता है। कई एक नवीन लोग इसको वराहावतार में भी लगाते हैं, अस्तु। वराहावतार वा सोम के पक्ष में काव्य का बनाना और उपदेश करना कदापि संगत नहीं हो सकता, इसलिये वराह के अर्थ यहाँ विद्वान् के ही हैं ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवानां) विदुषां मध्ये (देवः) यो मुख्यविद्वान् स (उशना, इव, काव्यं, ब्रुवाणः) कान्तिशीलविद्वानिव सन्दर्भरचनां कुर्वन् (जनिम, विवक्ति) अनेकजन्मवृत्तं वर्णयति (महिव्रतः) महाव्रतशीलः (शुचिबन्धुः) पवित्रताप्रियः (पावकः) सर्वेषां पावयिता (वराहः) सुतेजस्वी विद्वान् (रेभन्) साधूपदिशन् (पदा, अभि, एति) सन्मार्गेणागत्योपदिशति ॥७॥