पदार्थान्वयभाषाः - (मधुपृष्ठं) जो सैन्धवघनवत् सर्व ओर से आनन्दमय है, (घोरमयासं) जिसका प्रयत्न घोर है अर्थात् भयानक है और (अश्वं) जो गतिरूप है, (ऊरुचक्रे रथे) अत्यन्त वेगवाली द्रुतगति में (युञ्जन्ति) जिसने नियुक्त किया है, (स्वसारः) “स्वयं सरन्तीति स्वसारः इन्द्रियवृत्तयः” स्वाभाविकगतिशील इन्द्रियों की वृत्तियें (जामयः) जो मन से उत्पन्न होने के कारण परस्पर बन्धुपन का सम्बन्ध रखनेवाली चित्तवृत्तियें (सनाभयः) चित्त से उत्पन्न होने के कारण सनाभि सम्बन्ध रखनेवाली चित्तवृत्तियें (मर्जयन्ति) उक्त परमात्मा को विषय करती हैं और (वाजिनं) उस बलस्वरूप को (ऊर्जयन्ति) विषय करके उपासक को अत्यन्त आध्यात्मिक बल प्रदान करती हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में “जामि” नाम चित्तवृत्ति का है, क्योंकि वृत्ति मन से उत्पन्न होने के कारण अन्य वृत्तियें भी उसके साथ सम्बन्ध रखने के कारण जामि कहलाती हैं ॥ उक्त वृत्तियें जब परमात्मा का साक्षात्कार करती हैं, तो उपासक में आत्मिकबल उत्पन्न होता है अर्थात् शारीरिक, आत्मिक, सामाजिक तीनों प्रकार के बल की उत्पत्ति का कारण एकमात्र परमात्मा है, कोई अन्य नहीं ॥४॥