इन्द्र॑स्य सोम॒ राध॑से पुना॒नो हार्दि॑ चोदय । ऋ॒तस्य॒ योनि॑मा॒सद॑म् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
indrasya soma rādhase punāno hārdi codaya | ṛtasya yonim āsadam ||
पद पाठ
इन्द्र॑स्य । सो॒म॒ । राध॑से । पु॒ना॒नः । हार्दि॑ । चो॒द॒य॒ । ऋ॒तस्य॑ । योनि॑म् । आ॒ऽसद॑म् ॥ ९.८.३
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:8» मन्त्र:3
| अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:30» मन्त्र:3
| मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:3
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतस्य, योनिम्) हे परमात्मन् ! आप सत्यरूपी यज्ञ के कारण हो (आसदम्) प्रत्येक सत्यवादी के हृदय में स्थिर हो (सोम) हे सौम्यस्वभाव परमात्मन् ! (हार्द्दि) अभिलषित कामनाओं की सिद्धि के लिये (इन्द्रस्य) इस जीवात्मा की (राधसे) ऐश्वर्य के लिये (चोदय) आप प्रेरणा करें, क्योंकि (पुनानः) आप सबको पवित्र करनेवाले हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - सत्य का स्थान एकमात्र परमात्मा ही है, इसी अभिप्राय से “ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसः” इस मन्त्र में यह लिखा है कि दीप्तिमान् परमात्मा से ऋत और सत्य अर्थात् ऋत शास्त्रीयसत्य, और सत्य वस्तुगतसत्य ये दोनों प्रकार के सत्य परमात्मा के आधार पर ही स्थिर रहते हैं, इस अभिप्राय से यहाँ परमात्मा को ऋत की योनि कहा गया है। योनि के अर्थ यहाँ कारण के हैं ॥३॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! भवान् (ऋतस्य, योनिम्) सत्यरूपिणो यज्ञस्य जनकः (आसदम्) कृत्स्नानां सत्यवादिनां हृत्सु वर्तमानोऽस्ति (सोम) हे सौम्यस्वभाव भगवन् ! (हार्द्दि) अभिलषितसिद्धये (इन्द्रस्य) जीवात्मानम् (राधसे) ऐश्वर्यार्थम् (चोदय) प्रेरयतु, यतः (पुनानः) सर्वस्य शोधको भवानेव ॥३॥