पव॑मानो अ॒भि स्पृधो॒ विशो॒ राजे॑व सीदति । यदी॑मृ॒ण्वन्ति॑ वे॒धस॑: ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
pavamāno abhi spṛdho viśo rājeva sīdati | yad īm ṛṇvanti vedhasaḥ ||
पद पाठ
पव॑मानः । अ॒भि । स्पृधः॑ । विशः॑ । राजा॑ऽइव । सी॒द॒ति॒ । यत् । ई॒म् । ऋ॒ण्वन्ति॑ । वे॒धसः॑ ॥ ९.७.५
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:7» मन्त्र:5
| अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:28» मन्त्र:5
| मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:5
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (पवमानः) “पवत इति पवमानः” सबको पवित्र करनेवाला (अभि स्पृधः) सबको मर्दन करके विराजमान है (विशः राजा इव सीदति) प्रजाओं को राजा के समान अनुशासन करता है (यद् ईम्) भली-भाँति (ऋण्वन्ति) सत्कर्म में प्रेरणा करता है (वेधसः) सर्वोपरि बुद्धिमान् है ॥५॥
भावार्थभाषाः - राजा की उपमा यहाँ इसलिये दी गयी है कि राजा का शासन लोकप्रसिद्ध है, इस अभिप्राय से यहाँ राजा का दृष्टान्त है। ईश्वर के समान बल्सूचना के अभिप्राय से नहीं और जो मन्त्र में बहुवचन है, वह व्यत्यय से है ॥५॥२८॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (पवमानः) सर्वस्य पावयिता (अभि स्पृधः) सर्वोत्कर्षेण वर्तमानः (विशः राजा इव सीदति) प्रजा राजेवानुशास्ति (यद् ईम्) सम्यक् (ऋण्वन्ति) सत्कर्मसु प्रेरयति (वेधसः) सर्वोपरि ज्ञाता विधाता चास्ति ॥५॥