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परि॒ धामा॑नि॒ यानि॑ ते॒ त्वं सो॑मासि वि॒श्वत॑: । पव॑मान ऋ॒तुभि॑: कवे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari dhāmāni yāni te tvaṁ somāsi viśvataḥ | pavamāna ṛtubhiḥ kave ||

पद पाठ

परि॑ । धामा॑नि । यानि॑ । ते॒ । त्वम् । सो॒म॒ । अ॒सि॒ । वि॒श्वतः॑ । पव॑मान । ऋ॒तुऽभिः॑ । क॒वे॒ ॥ ९.६६.३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:66» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:7» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (कवे) हे सर्वज्ञ परमात्मन् ! (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले ! आप (ऋतुभिः) वसन्त आदि ऋतुओं के परिवर्तन से संसार में नये-नये भाव उत्पन्न करते हैं और (यानि ते) जो तुम्हारे (धामानि) लोक-लोकान्तर (परि) सब ओर हैं, उनको (विश्वतः) सब प्रकार से (त्वं सोमासि) आप उत्पन्न करनेवाले हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उत्पत्ति, स्थिति तथा प्रलय तीनों प्रकार की क्रियाओं का हेतु है। अर्थात् उसी से संसार की उत्पत्ति और उसी में स्थिति और उसी से प्रलय होता है ॥३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (कवे) हे सर्वज्ञ जगदीश्वर ! (पवमान) सर्वपवित्रकर्तः ! भवान् (ऋतुभिः) वसन्ताद्यृतूनां परिवर्तनेन नव्यान् भावानुत्पादयति। अथ च (यानि ते) यानि तव (धामानि) लोकलोकान्तराणि (परि) परितस्सन्ति तानि (विश्वतः) सर्वथा (त्वं सोमासि) त्वमुत्पादकोऽसि ॥३॥