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पव॑स्व विश्वचर्षणे॒ऽभि विश्वा॑नि॒ काव्या॑ । सखा॒ सखि॑भ्य॒ ईड्य॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pavasva viśvacarṣaṇe bhi viśvāni kāvyā | sakhā sakhibhya īḍyaḥ ||

पद पाठ

पव॑स्व । वि॒श्व॒ऽच॒र्ष॒णे॒ । अ॒भि । विश्वा॑नि । काव्या॑ । सखा॑ । सखि॑ऽभ्यः । ईड्यः॑ ॥ ९.६६.१

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:66» मन्त्र:1 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:7» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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आर्यमुनि

अब ईश्वर के गुणों का वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वचर्षणे) हे सर्वज्ञ परमात्मन् ! (विश्वानि काव्या) सम्पूर्ण कवियों के भाव को (अभि) सब ओर से प्रदान करके हमको आप (पवस्व) पवित्र करें और मित्रों के लिए आप (सखिभ्यः) मित्र हैं (ईड्यः) तथा सर्वपूज्य हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो लोग परमात्मा से मित्र के समान प्रेम करते हैं अर्थात् जिनको परमात्मा मित्र के समान प्रिय लगता है, उनको परमात्मा कवित्व की अद्भुत शक्ति देते हैं ॥१॥
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आर्यमुनि

अथेश्वरगुणा वर्ण्यन्ते।

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वचर्षणे) हे जगदीश्वर ! (विश्वानि काव्या) सर्वेषां कवीनां भावान् (अभि) परितः प्रदायास्मान् (पवस्व) पवित्रय। अथ च (सखिभ्यः) मित्रेभ्यः (सखा) मित्रमसि। तथा (ईड्यः) सर्वैः पूजनीयोऽसि ॥१॥