आ प॑वमान सुष्टु॒तिं वृ॒ष्टिं दे॒वेभ्यो॒ दुव॑: । इ॒षे प॑वस्व सं॒यत॑म् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
ā pavamāna suṣṭutiṁ vṛṣṭiṁ devebhyo duvaḥ | iṣe pavasva saṁyatam ||
पद पाठ
आ । प॒व॒मा॒न॒ । सु॒ऽस्तु॒तिम् । वृ॒ष्टिम् । दे॒वेभ्यः॑ । दुवः॑ । इ॒षे । प॒व॒स्व॒ । स॒म्ऽयत॑म् ॥ ९.६५.३
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:65» मन्त्र:3
| अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:1» मन्त्र:3
| मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:3
बार पढ़ा गया
आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले ! आप (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (सुष्टुतिं वृष्टिं) सुन्दर स्तुतिरूप वेद की वृष्टि को (दुवः) प्रसन्नता के लिये (आ पवस्व) दीजिये और मुझ (संयतं) संयमी को (इषे) ऐश्वर्य (आ पवस्व) दीजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा संयमी जनों को ऐश्वर्य प्रदान करता है और जो लोग दिव्यगुणसम्पन्न हैं, उनको ही सुधामयी वृष्टि से परमात्मा सिञ्चित करता है ॥ तात्पर्य यह है कि परमात्मा की कृपाओं के पाने के लिये प्रथम मनुष्य को स्वयं पात्र बनना चाहिये। अर्थात् मनुष्य अधिकारी बनके उसके ऐश्वर्यों का पात्र बने ॥३
बार पढ़ा गया
आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (पवमान) हे सर्वपावक परमेश्वर ! भवान् (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (सुष्टुतिं वृष्टिं) सुन्दरस्तुतिरूपां वेदस्य वृष्टिं (दुवः) प्रसन्नतायै (आ पवस्व) वेदवृष्टिं ददातु। अथ च (संयतं) संयमिनं माम् (इषे) ऐश्वर्यं (आ पवस्व) ददातु ॥३॥