आ ते॒ दक्षं॑ मयो॒भुवं॒ वह्नि॑म॒द्या वृ॑णीमहे । पान्त॒मा पु॑रु॒स्पृह॑म् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
ā te dakṣam mayobhuvaṁ vahnim adyā vṛṇīmahe | pāntam ā puruspṛham ||
पद पाठ
आ । ते॒ । दक्ष॑म् । म॒यः॒ऽभुव॑म् । वह्नि॑म् । अ॒द्य । वृ॒णी॒म॒हे॒ । पान्त॑म् । आ । पु॒रु॒ऽस्पृह॑म् ॥ ९.६५.२८
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:65» मन्त्र:28
| अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:6» मन्त्र:3
| मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:28
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (मयोभुवम्) जो सब सुखों के देनेवाले आप हैं, (पुरुस्पृहं) जो सब पुरुषों से भजनीय हैं, (पान्तं) सर्वरक्षक हैं, (दक्षं) सर्वज्ञ हैं, (वह्निम्) प्रकाशस्वरूप हैं, उक्तगुणसम्पन्न (ते) आपको (अद्य) आज (आ वृणीमहे) हम सब प्रकार स्वीकार करते हैं ॥२८॥
भावार्थभाषाः - जो उपासक उक्तगुणसम्पन्न परमात्मा की उपासना करते हैं, वे सब प्रकार से शुद्ध होकर परमात्मभाव को प्राप्त होते हैं ॥२८॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (मयोभुवं) सर्वसुखदातारं (पुरुस्पृहं) सर्वजनभजनीयं (पान्तं) सर्वरक्षकं (दक्षं) सर्वज्ञं (वह्निम्) प्रकाशस्वरूपं पूर्वोक्तगुणसम्पन्नं (ते) भवन्तं (अद्य) अद्यैव (आ वृणीमहे) सर्वथा वयं स्वीकुर्मः ॥२८॥