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ते नो॑ वृ॒ष्टिं दि॒वस्परि॒ पव॑न्ता॒मा सु॒वीर्य॑म् । सु॒वा॒ना दे॒वास॒ इन्द॑वः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te no vṛṣṭiṁ divas pari pavantām ā suvīryam | suvānā devāsa indavaḥ ||

पद पाठ

ते । नः॒ । वृ॒ष्टिम् । दि॒वः । परि॑ । पव॑न्ताम् । आ । सु॒ऽवीर्य॑म् । सु॒वा॒नाः । दे॒वासः॑ । इन्द॑वः ॥ ९.६५.२४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:65» मन्त्र:24 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:5» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:24


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) वे विद्वान् (नः) हमारे लिये (वृष्टिं) वृष्टि को (दिवस्परि) द्युलोक से बरसायें। ऐश्वर्यवाले (इन्दवः) दिव्यगुणसम्पन्न विद्वान् (सुवीर्यम्) पराक्रम को (सुवानाः) पैदा करते हुए (आ पवन्तां) हमको सब प्रकार से पवित्र करें ॥२४॥
भावार्थभाषाः - द्युलोक से वृष्टि करने का तात्पर्य यहाँ हिमालय आदि दिव्य स्थानों से जल की धाराओं से सींच देने का है। जो विद्वान् व्यवहारविषय के सब विद्याओं के वेत्ता होते हैं, वे अपने विद्याबल से प्रजा में सुवृष्टि करके अद्भुत पराक्रम को उत्पन्न कर देते हैं। उक्त विद्वानों से शिक्षा लेकर सुरक्षित होने का उपदेश यहाँ परमात्मा ने किया है ॥२४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) ते विद्वांसः (नः) अस्मभ्यं (वृष्टिं) वृष्टिं (दिवस्परि) द्युलोकतो वर्षयन्तु। (इन्दवः) ऐश्वर्यसम्पन्नाः (देवासः) दिव्यगुणाः पण्डिताः (सुवीर्यम्) पराक्रमम् (सुवानाः) उत्पादयन्तः (आ पवन्तां) सर्वथास्मान् पवित्रयन्तु ॥२४॥