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अ॒या चि॒त्तो वि॒पानया॒ हरि॑: पवस्व॒ धार॑या । युजं॒ वाजे॑षु चोदय ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayā citto vipānayā hariḥ pavasva dhārayā | yujaṁ vājeṣu codaya ||

पद पाठ

अ॒या । चि॒त्तः । वि॒पा । अ॒नया॑ । हरिः॑ । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । युज॑म् । वाजे॑षु । चो॒द॒य॒ ॥ ९.६५.१२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:65» मन्त्र:12 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:3» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:12


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (हरिः) हे सम्पूर्ण बलों को स्वाधीन रखनेवाले परमात्मन् ! आप (धारया) आनन्द की वृष्टि से हमको (पवस्व) पवित्र करें, जो आनन्द की वृष्टि (चित्तः) अद्भुत है (अया) और कर्मशीलता देनेवाली है और (विपा) शुभकार्यों में प्रेरणा करनेवाली है (अनया) उससे (पवस्व) आप हमको पवित्र करें (वाजेषु) यज्ञों में (युजं) युक्त मुझको (चोदय) सत्कर्म की प्रेरणा करें ॥१२॥
भावार्थभाषाः - जो लोग सत्कर्मी बनने के लिये परमात्मा से प्रार्थना करते हैं, परमात्मा उन्हें अवश्यमेव शुभकर्मों में लगाता है ॥१२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे सर्वबलस्वायत्तकारिन् परमेश्वर ! भवान् (धारया) आनन्दवृष्ट्या (पवस्व) अस्मान् पवित्रयतु। या आनन्दवृष्टिः (चित्तः) अद्भुता। तथा (अया) कर्मशीलतादात्री अथ च (विपा) शुभकृत्येषु प्रेरयित्री वर्तते (अनया) एतादृश्या वृष्ट्या (पवस्व) अस्मान् पवित्रयतु (वाजेषु) यज्ञेषु (युजं) युक्तं मां (चोदय) शुभकर्मणि प्रेरयतु ॥१२॥