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परि॑ णो याह्यस्म॒युर्विश्वा॒ वसू॒न्योज॑सा । पा॒हि न॒: शर्म॑ वी॒रव॑त् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari ṇo yāhy asmayur viśvā vasūny ojasā | pāhi naḥ śarma vīravat ||

पद पाठ

परि॑ । नः॒ । या॒हि॒ । अ॒स्म॒ऽयुः । विश्वा॑ । वसू॑नि । ओज॑सा । पा॒हि । नः॒ । शर्म॑ । वी॒रऽव॑त् ॥ ९.६४.१८

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:64» मन्त्र:18 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:39» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:18


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (अस्मयुः) भक्तों को प्राप्त होनेवाले आप (नः) हम लोगों के (विश्वा) सम्पूर्ण (वसूनि) धनों को (ओजसा) बल के सहित (परियाहि) सब ओर से प्राप्त कराइये और (नः) हम लोगों के (वीरवत्) वीर पुत्रों की और (शर्म) शील की (पाहि) रक्षा कीजिये ॥१८॥
भावार्थभाषाः - जो लोग सदाचारी हैं और सदाचारी से अपने शील को बनाते हैं, परमात्मा उनकी सदैव रक्षा करता है ॥१८॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (अस्मयुः) भक्तैः प्राप्तव्यो भवान् (नः) अस्माकं (विश्वा) सम्पूर्णानि (वसूनि) धनानि (ओजसा) सबलानि (परियाहि) सर्वतः प्रापयतु। अथ च (नः) अस्माकं (वीरवत्) वीरान् पुत्रान् (शर्म) शीलं च (पाहि) रक्षयतु ॥१८॥