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दे॒वो दे॒वाय॒ धार॒येन्द्रा॑य पवते सु॒तः । पयो॒ यद॑स्य पी॒पय॑त् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

devo devāya dhārayendrāya pavate sutaḥ | payo yad asya pīpayat ||

पद पाठ

दे॒वः । दे॒वाय॑ । धार॑या । इन्द्रा॑य । प॒व॒ते॒ । सु॒तः । पयः॑ । यत् । अ॒स्य॒ । पी॒पय॑त् ॥ ९.६.७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:6» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवः) दीव्यतीति देवः प्रकाशस्वरूप परमात्मा (देवाय) दिव्यशक्तिधारी (इन्द्राय) परमैश्वर्य्यवाले जिज्ञासु के लिये (धारया) आनन्द की वृष्टि से (पवते) पवित्र करता है (सुतः) आनन्दों का आविर्भाव करनेवाला है (यत्) जो (अस्य) इस पूर्वोक्त जिज्ञासु को (पयः) पानार्ह आनन्द को (पीपयत्) पिलाता है, इसलिये वह आनन्दों का आविर्भाव करनेवाला है ॥७॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा ही सब आनन्दों का आविर्भाव करनेवाला है। वह जिन पुरुषों को ब्रह्मानन्द का पात्र समझता है, उनको आनन्द प्रदान करता है। यहाँ देव शब्द के अर्थ परमात्मा और दूसरे देव शब्द के अर्थ जिज्ञासु के–“स्याच्चैकस्य ब्रह्मशब्दवत्” ब्र० सू० २।३।५। इस सूत्र से ब्रह्मशब्द के समान है अर्थात् “तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व तपो ब्रह्मेति” तै० ३।२। इस वाक्य में पहले ब्रह्मा शब्द के अर्थ ईश्वर के हैं, दूसरे ब्रह्म शब्द के अर्थ तप के हैं। जिस प्रकार इसमें एक ही स्थान में दो अर्थ हो जाते हैं, उसी प्रकार उक्त मन्त्र में देव शब्द के दो अर्थ करने में कोई दोष नहीं ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवः) प्रकाशस्वरूपः परमात्मा (देवाय) दिव्यशक्तये (इन्द्राय) ऐश्वर्यवते जिज्ञासवे (धारया) आनन्दवृष्ट्या (पवते) पवित्रीकरणं धारयति (सुतः) आनन्दस्याविर्भावकः सोऽस्ति (यत्) यतः (अस्य) इमं जिज्ञासुं (पयः) पानार्हमानन्दं (पीपयत्) पाययति, अत आविर्भावक आनन्दस्यास्ति ॥७॥