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सु॒वि॒तस्य॑ मनाम॒हेऽति॒ सेतुं॑ दुरा॒व्य॑म् । सा॒ह्वांसो॒ दस्यु॑मव्र॒तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

suvitasya manāmahe ti setuṁ durāvyam | sāhvāṁso dasyum avratam ||

पद पाठ

सु॒वि॒तस्य॑ । म॒ना॒म॒हे॒ । अति॑ । सेतु॑म् । दुः॒ऽआ॒व्य॑म् । सा॒ह्वांसः॑ । दस्यु॑म् । अ॒व्र॒तम् ॥ ९.४१.२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:41» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:31» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुवितस्य दुराव्यम् सेतुम्) ऐसे पूर्वोक्त लोकों को उत्पन्न करनेवाले दुःख में प्राप्त करने योग्य संसार के सेतुरूप ईश्वर की (मनामहे) स्तुति करते हैं, जो परमात्मा (अव्रतम् दस्युम् साह्वांसः) वेदधर्म को नहीं पालन करनेवाले दुराचारियों का शमन करनेवाला है ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा इस चराचर जगत् का सेतु है अर्थात् मर्य्यादा है, उसी की मर्य्यादा में सूर्य्य-चन्द्रादि सब लोक परिभ्रमण करते हैं। मनुष्यों को चाहिये कि उस मर्य्यादा पुरुषोत्तम को सदैव अपना लक्ष्य बनावें ॥२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुवितस्य दुराव्यम् सेतुम्) एवंविधपूर्वोक्तलोकानां जनयितारं दुःसहसंसारस्य सेतुरूपं परमात्मानं (मनामहे) स्तुमः यः परमात्मा (अव्रतम् दस्युम् साह्वांसः) वेदधर्मविमुखान् दुराचारान् शमयितास्ति ॥२॥