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ए॒तं त्रि॒तस्य॒ योष॑णो॒ हरिं॑ हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः । इन्दु॒मिन्द्रा॑य पी॒तये॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

etaṁ tritasya yoṣaṇo hariṁ hinvanty adribhiḥ | indum indrāya pītaye ||

पद पाठ

ए॒तम् । त्रि॒तस्य॑ । योष॑णः । हरि॑म् । हि॒न्व॒न्ति॒ । अद्रि॑ऽभिः । इन्दु॑म् । इन्द्रा॑य । पी॒तये॑ ॥ ९.३८.२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:38» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:28» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (त्रितस्य योषणः हरिम्) “हरति प्रापयति स्ववशमानयतीति हरिः स्वामी” तीनों गुणवाली माया के अधिपति (एतम् इन्दुम्) परमैश्वर्यसम्पन्न परमात्मा को (इन्द्राय पीतये) जीव की तृप्ति के लिये (अद्रिभिः) इन्द्रियवृत्ति द्वारा (हिन्वन्ति) विद्वान् लोग ध्यानविषय करते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - सत्त्व, रज और तम इन तीनों गुणोंवाली माया, जो प्रकृति है, उसका एकमात्र अधिपति परमात्मा ही है, कोई अन्य नहीं। जो-जो पदार्थ इन्द्रियगोचर होते हैं, वे सब मायिक हैं अर्थात् मायारूपी उपादानकारण से बने हुए हैं। परमात्मा मायारहित होने से अदृश्य है। उसका साक्षात्कार केवल बुद्धिवृत्ति से होता है। बाह्य चक्षुरादि इन्द्रियों से नहीं। इसी अभिप्राय से यहाँ परमात्मा को बुद्धिवृत्ति का विषय कहा गया है ॥२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (त्रितस्य योषणः हरिम्) त्रिगुणायाः प्रकृतेः प्रभुं (एतम् इन्दुम्) परमैश्वर्यसम्पन्नमिमं परमात्मानं (इन्द्राय पीतये) जीवस्य तृप्तये (अद्रिभिः) इन्द्रियवृत्तिभिः (हिन्वन्ति) विद्वांसः ध्यानविषयीकुर्वन्ति ॥२॥