स विश्वा॑ दा॒शुषे॒ वसु॒ सोमो॑ दि॒व्यानि॒ पार्थि॑वा । पव॑ता॒मान्तरि॑क्ष्या ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
sa viśvā dāśuṣe vasu somo divyāni pārthivā | pavatām āntarikṣyā ||
पद पाठ
सः । विश्वा॑ । दा॒शुषे॑ । वसु॑ । सोमः॑ । दि॒व्यानि॑ । पार्थि॑वा । पव॑ताम् । आ । अ॒न्तरि॑क्ष्या ॥ ९.३६.५
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:36» मन्त्र:5
| अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:26» मन्त्र:5
| मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:5
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सः सोमः) वह सौम्यस्वभाववाले आप (दाशुषे) अपने उपासक के लिये (दिव्यानि) दिव्य (अन्तरिक्ष्या) अन्तरिक्ष में होनेवाले तथा (पार्थिवानि) पृथ्वीलोक में होनेवाले (विश्वा वसु) सम्पूर्ण रत्नादि ऐश्वर्यों को (आपवताम्) दीजिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो लोग अपने स्वभाव को सौम्य बनाते हैं अर्थात् ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव को लक्ष्य रखकर अपने गुण-कर्म-स्वभाव को भी उसी प्रकार का पवित्र बानाते हैं, वे सब ऐश्वर्यों को प्राप्त होते हैं ॥५॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सः सोमः) स सौम्यो भवान् (दाशुषे) स्वभक्ताय (दिव्यानि) दिव्यानि (अन्तरिक्ष्या) अन्तरिक्षोद्भवानि तथा (पार्थिवानि) भौमानि (विश्वा वसु) सर्वाणि रत्नाद्यैश्वर्याणि (आपवताम्) ददातु ॥५॥