आदीं॑ हं॒सो यथा॑ ग॒णं विश्व॑स्यावीवशन्म॒तिम् । अत्यो॒ न गोभि॑रज्यते ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
ād īṁ haṁso yathā gaṇaṁ viśvasyāvīvaśan matim | atyo na gobhir ajyate ||
पद पाठ
आत् । ई॒म् । हं॒सः । यथा॑ । ग॒णम् । विश्व॑स्य । अ॒वी॒व॒श॒त् । म॒तिम् । अत्यः॑ । न । गोभिः॑ । अ॒ज्य॒ते॒ ॥ ९.३२.३
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:32» मन्त्र:3
| अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:22» मन्त्र:3
| मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:3
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वस्य मतिम् अवीवशत्) सब की मति को वश में रखनेवाला (अत्यः न) विद्युत् की नाईं दुर्ग्राह्य (आदीम्) ऐसे परमात्मा को (हंसः यथा गणम्) जिस प्रकार हंस अपने सजातीय गण में जाकर मिलता है, उसी प्रकार (गोभिः अज्यते) जीव इन्द्रियों द्वारा साक्षात्कार करता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - जीवात्मा जब तक अपनी सजातीय वस्तु के साथ सम्बन्ध नहीं लगाता, तब तक उसे आनन्द कदापि प्राप्त नहीं हो सकता, इस भाव का इस मन्त्र में उपदेश किया है कि जिस प्रकार हंस अपने सजातीय गण में मिलकर आनन्दित होता है, इस प्रकार जीवात्मा भी उस चिद्घन ब्रह्म में मिल जाता है। जीवात्मा को हंस की उपमा इस वास्ते दी है कि “हन्त्यविद्यामिति हंसः” यह जीव अविद्या का हनन करता है। यहाँ विज्ञानी जीव का वर्णन है और ब्रह्मप्राप्ति से जीव अविद्या का हनन करता है, जैसे कि ‘सता सोम्य तदा सम्पन्नो भवति’ छा० ॥३॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वस्य मतिम् अवीवशत्) यः सर्वस्य बुद्धिं वशमानयति तं (अत्यः न) विद्युतमिव दुर्ग्रहम् (आदीम्) इमं परमात्मानं (हंसः यथा गणम्) हंसः स्वसजातीयगणं यथा गच्छति तथा (गोभिः अज्यते) जीवः इन्द्रियैः सङ्गच्छते ॥३॥