ए॒ष उ॒ स्य पु॑रुव्र॒तो ज॑ज्ञा॒नो ज॒नय॒न्निष॑: । धार॑या पवते सु॒तः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
eṣa u sya puruvrato jajñāno janayann iṣaḥ | dhārayā pavate sutaḥ ||
पद पाठ
ए॒षः । ऊँ॒ इति॑ । स्यः । पु॒रु॒ऽव्र॒तः । ज॒ज्ञा॒नः । ज॒नय॑न् । इषः॑ । धार॑या । प॒व॒ते॒ । सु॒तः ॥ ९.३.१०
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:3» मन्त्र:10
| अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:21» मन्त्र:5
| मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:10
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (स्यः) वह पूर्वोक्त परमात्मा (पुरुव्रतः) अनन्तकर्मा है (जज्ञानः) सर्वत्र प्रसिद्ध (इषः) सम्पूर्ण लोक-लोकान्तरों को (जनयन्) उत्पन्न करता हुआ (सुतः) स्वसत्ता से विराजमान (एषः) यह (धारया) अपनी सुधामयी वृष्टि की धाराओं से (पवते) सबको पवित्र करता है ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो परमात्मा अनन्तकर्म्मा है, वही अपनी शक्ति से सब लोक-लोकान्तरों को उत्पन्न करता है और वही अपनी पवित्रता से सबको पवित्र करता है। अनन्तकर्म्मा, यहाँ परमात्मा को उसकी अनन्त शक्तियों के अभिप्राय से वर्णन किया है, किसी शारीरिक कर्म के अभिप्राय से नहीं ॥१०॥२१॥ तीसरा सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (एष स्यः) सोऽयं परमात्मा (पुरुव्रतः) अनन्तकर्मा (जज्ञानः) सर्वत्र प्रसिद्धः (इषः) सर्वं लोकलोकान्तरम् (जनयन्) उत्पादयन् (सुतः) स्वसत्तया विराजमानः (धारया) स्वपीयूषवर्षेण (पवते) सर्वं पवित्रयति ॥१०॥ तृतीयं सूक्तं एकविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥