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ए॒ष दे॒वो अम॑र्त्यः पर्ण॒वीरि॑व दीयति । अ॒भि द्रोणा॑न्या॒सद॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

eṣa devo amartyaḥ parṇavīr iva dīyati | abhi droṇāny āsadam ||

पद पाठ

ए॒षः । दे॒वः । अम॑र्त्यः । प॒र्ण॒वीःऽइ॑व । दी॒य॒ति॒ । अ॒भि । द्रोणा॑नि । आ॒ऽसद॑म् ॥ ९.३.१

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:3» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:20» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:1


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आर्यमुनि

अब पूर्वोक्त परमात्मदेव के गुणों का कथन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (एष देवः) जिस परमात्मदेव का पूर्व वर्णन किया गया, वह (अमर्त्यः) अविनाशी है। (आसदम्) सर्वत्र व्याप्त होने के लिये वह परमात्मा (अभि द्रोणानि) प्रत्येक ब्रह्माण्ड को (पर्णवीः) विद्युत् शक्ति के (इव) समान (दीयति) प्राप्त है ॥१॥
भावार्थभाषाः - दीव्यतीति देव:=जो सबको प्रकाश करे, उसको देव कहते हैं। सर्वप्रकाशक देव अनादिसिद्ध और अविनाशी है, उसकी गति प्रत्येक ब्रह्माण्ड में है, वही परमात्मा इस संसार की उत्पति स्थिति संहार का करनेवाला है, उसी की उपासना सबको करनी चाहिये ॥१॥
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आर्यमुनि

अथ पूर्वोक्तस्य परमात्मदेवस्य गुणा निर्दिश्यन्ते।

पदार्थान्वयभाषाः - (एष, देवः) पूर्ववर्णितः परमात्मा (अमर्त्यः) अविनाशी अस्ति। सः (आसदम्) सर्वं व्याप्तुम् (अभि, द्रोणानि) प्रतिब्रह्माण्डम् (पर्णवीः) विद्युत् (इव) यथा (दीयति) प्राप्तः ॥१॥