तं त्वा॑ हिन्वन्ति वे॒धस॒: पव॑मान गिरा॒वृध॑म् । इन्द॒विन्द्रा॑य मत्स॒रम् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
taṁ tvā hinvanti vedhasaḥ pavamāna girāvṛdham | indav indrāya matsaram ||
पद पाठ
तम् । त्वा॒ । हि॒न्व॒न्ति॒ । वे॒धसः॑ । पव॑मान । गि॒रा॒ऽवृध॑म् । इन्दो॒ इति॑ । इन्द्रा॑य । म॒त्स॒रम् ॥ ९.२६.६
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:26» मन्त्र:6
| अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:16» मन्त्र:6
| मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:6
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (तम् गिरावृधम्) उस पूर्वोक्तगुणसम्पन्न और वेदवाणियों से प्रकाशमान (त्वा) आपको (वेधसः) विद्वान् लोग (हिन्वन्ति) साक्षात्कार करते हैं। (इन्दो) हे परमैश्वर्य्यसम्पन्न भगवन् ! आप (इन्द्राय मत्सरम्) अज्ञानी जीव के लिये अत्यन्त गूढ़ हो ॥६॥ परमात्मा के साक्षात्कार करने के लिये मनुष्य को संयमी होना आवश्यक है। जो पुरुष संयमी नहीं होता, उसको परमात्मा का साक्षात्कार कदापि नहीं होता। संयम मन वाणी तथा शरीर तीनों का कहलाता है। मन के संयम का नाम शम और वाणी के संयम का नाम वाक्संयम और इन्द्रियों के संयम का नाम दम है। इस प्रकार जो पुरुष अपनी इन्द्रियों को संयम में रखता है और अपने मन को संयम में रखता है तथा व्यर्थ बोलता नहीं, किन्तु वाणी को संयम में रखता है, वह पुरुष संयमी तथा दमी कहलाता है। इसका वर्णन शतपथब्राह्मण में विस्तारपूर्वक है। वहाँ यह लिखा है कि देव और असुर में यहीं भेद है कि देव दमी अर्थात् इन्द्रियों को दमन करनेवाले मनुष्यवर्ग का नाम है और इन्द्रियारामी विषयपरायण लोगों का नाम असुर है। उक्त मन्त्र में परमात्मा ने यह उपदेश किया है कि हे मनुष्यों ! तुम इन्द्रियारामी और अज्ञानी मत बनो, किन्तु तुम विद्वान् बनकर संयमी बनो, यही मनुष्यजन्म का फल है ॥६॥
भावार्थभाषाः - यह छब्बीसवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (पवमान) हे सर्वस्य पावितः परमात्मन् ! (तम् गिरावृधम्) पूर्वोक्तगुणसम्पन्नं वेदवाग्भिः प्रकाशमानं (त्वा) भवन्तं (वेधसः) विद्वांसः (हिन्वन्ति) साक्षात्कुर्वन्ति। (इन्दो) हे परमैश्वर्य्यसम्पन्न भगवन् ! यो भवान् (इन्द्राय) अज्ञानिजीवेभ्यः (मत्सरम्) अत्यन्तगूढोऽस्ति ॥६॥ इति षड्विंशतितमं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥