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तं वे॒धां मे॒धया॑ह्य॒न्पव॑मान॒मधि॒ द्यवि॑ । ध॒र्ण॒सिं भूरि॑धायसम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ vedhām medhayāhyan pavamānam adhi dyavi | dharṇasim bhūridhāyasam ||

पद पाठ

तम् । वे॒धाम् । मे॒धया॑ । अ॒ह्य॒न् । पव॑मानम् । अधि॑ । द्यवि॑ । ध॒र्ण॒सिम् । भूरि॑ऽधायसम् ॥ ९.२६.३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:26» मन्त्र:3 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:16» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (तम् वेधाम्) उस सृष्टिकर्ता परमात्मा को (मेधया अह्यन्) विद्वान् लोग अपनी बुद्धि का विषय बनाते हैं, जो (पवमानम्) सबको पवित्र करनेवाला है और (अधि द्यवि) जो द्युलोक में अधिष्ठातारूप से स्थित है (धर्णसिम्) सबको धारण करनेवाला तथा (भूरिधायसम्) अनेक वस्तुओं का रचयिता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - उक्त परमात्मा जो सब लोक-लोकान्तरों का आधार है, उसको योगादि साधनों द्वारा संस्कृत बुद्धि से योगीजन विषय करते हैं। इस मन्त्र में जो परमात्मा को वेधा अर्थात् “विधति लोकान् विदधातीति वा वेधाः” विधातारूप से वर्णन किया है, इसका तात्पर्य यह है कि परमात्मा सब वस्तुओं का निर्माणकर्ता है, इसी अभिप्राय से “सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्” ऋ. सू. १९ में यह कथन किया है कि सूर्य चन्द्रमा आदि ज्योतिर्मय पदार्थों का निर्माण एकमात्र परमात्मा ने ही किया है। सूर्य चन्द्रमा यहाँ उपलक्षण है, वस्तुतः सब ब्रह्माण्डों का निर्माता एक परमात्मा ही है, कोई अन्य नहीं ॥३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (तम् वेधाम्) तं स्रष्टारं परमात्मानं (मेधया अह्यन्) विद्वांसः स्वबुद्धिविषयीकुर्वन्ति (पवमानम्) यः सर्वपविता (अधि द्यवि) द्युलोकमधिष्ठानरूपेण अधिष्ठाता (धर्णसिम्) सर्वाधारः (भूरिधायसम्) अनेकवस्तूनामुत्पादकश्चास्ति ॥३॥