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शुचि॑: पाव॒क उ॑च्यते॒ सोम॑: सु॒तस्य॒ मध्व॑: । दे॒वा॒वीर॑घशंस॒हा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śuciḥ pāvaka ucyate somaḥ sutasya madhvaḥ | devāvīr aghaśaṁsahā ||

पद पाठ

शुचिः॑ । पा॒व॒कः । उ॒च्य॒ते॒ । सोमः॑ । सु॒तस्य॑ । मध्वः॑ । दे॒व॒ऽअ॒वीः । अ॒घ॒शं॒स॒ऽहा ॥ ९.२४.७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:24» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:14» मन्त्र:7 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - वह परमात्मा (शुचिः) शुद्धस्वरूप है (पावकः उच्यते) सब को पवित्र करनेवाला कहा जाता है (सोमः) “सूते चराचरं यः स सोमः” जो सब का उत्पादक है, उसका नाम यहाँ सोम है। (सुतस्य) इस कार्यमात्र ब्रह्माण्ड का (मध्वः) अधिकरण है (देवावीः) देवताओं का रक्षक है (अघशंसहा) पापों की स्तुति करनेवाले पापमय जीवन व्यतीत करनेवाले पुरुषों का हनन करनेवाला है ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो लोग पापमय जीवन व्यतीत करते हैं, परमात्मा उनकी वृद्धि कदापि नहीं करता। यद्यपि पापी पुरुष भी कहीं-कहीं फलते-फूलते हुए देखे जाते हैं, तथापि उनका परिणाम अच्छा कदापि नहीं होता। अन्त में ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ का सिद्धान्त ही ठीक रहता है कि जिस ओर धर्म होता है, उसी पक्ष की जय होती है। इस तात्पर्य से मन्त्र में यह कथन किया है कि परमात्मा पापी पुरुष और उनका अनुमोदन करनेवाले दोनों का नाश करता है ॥७॥ यह चौबीसवाँ सूक्त और चौदहवाँ वर्ग तथा पहिला अनुवाक समाप्त हुआ ॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - स परमात्मा (शुचिः) शुद्धस्वरूपः (पावकः उच्यते) सर्वेषां पावकश्च कथितः (सोमः) सर्वजगदुत्पादकः (सुतस्य) एतत्कार्य्यमात्रस्य ब्रह्माण्डस्य (मध्वः) आधारः (देवावीः) देवानां रक्षकः (अघशंसहा) पापप्रशंसकानां पुंसां हन्ता चास्ति ॥७॥ इति चतुर्विंशं सूक्तं चतुर्दशो वर्गः प्रथमोऽनुवाकश्च समाप्तः ॥