वांछित मन्त्र चुनें

ए॒ते वाता॑ इवो॒रव॑: प॒र्जन्य॑स्येव वृ॒ष्टय॑: । अ॒ग्नेरि॑व भ्र॒मा वृथा॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ete vātā ivoravaḥ parjanyasyeva vṛṣṭayaḥ | agner iva bhramā vṛthā ||

पद पाठ

ए॒ते वाताः॑ऽइव । उ॒रवः॑ । प॒र्जन्य॑स्यऽइव । वृ॒ष्टयः॑ । अ॒ग्नेःऽइ॑व । भ्र॒माः । वृथा॑ ॥ ९.२२.२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:22» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एते) सब उत्पन्न हुए ब्रह्माण्ड (उरवः वाताः इव) बहुत सी वायु की तरह (पर्जन्यस्य वृष्टयः इव) और मेघ की वृष्टि के समान (अग्नेः भ्रमाः इव) अग्नि के प्रज्वलन की तरह (वृथा) अनायास गमन कर रहे हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार अग्नि की ज्वलनशक्ति स्वाभाविक है, इसी प्रकार वे ब्रह्माण्ड भी स्वाभाविक गतिशील बनाये गये हैं। स्वाभाविक से तात्पर्य यहाँ आकस्मिक नहीं है, किन्तु नियमपूर्वक भ्रमण का है। जैसे सूर्य चन्द्र आदि ईश्वरदत्त नियम से सदैव परिभ्रमण करते हैं, इसी प्रकार ये सब ब्रह्माण्ड ईश्वरदत्त नियम से परिभ्रमण करते हैं। इसी अभिप्राय से कहा है कि ‘भयादस्याग्निस्तपति भयात्तपति सूर्यः’ क० २।६। उस के भय से अग्नि तपती है और उसी के भय से सूर्य तपता है। जिस प्रकार इसमें ईश्वराधीनता अग्न्यादि तत्त्वों की वर्णन की गयी है, इसी प्रकार सब कार्यजात ईश्वराधीन है ॥२॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एते) इमानि सर्वाणि ब्रह्माण्डानि (उरवः वाताः इव) बहवो वायव इव (पर्जन्यस्य वृष्टयः इव) मेघस्य वृष्टिः इव च (अग्नेः भ्रमाः इव) अग्नेः ज्वाला इव च (वृथा) अनायासं भ्रमन्ति ॥२॥