पव॑स्व देव॒वीरति॑ प॒वित्रं॑ सोम॒ रंह्या॑ । इन्द्र॑मिन्दो॒ वृषा वि॑श ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
pavasva devavīr ati pavitraṁ soma raṁhyā | indram indo vṛṣā viśa ||
पद पाठ
पव॑स्व । दे॒व॒ऽवीः । अति॑ । प॒वित्र॑म् । सो॒म॒ । रंह्या॑ । इन्द्र॑म् । इ॒न्दो॒ इति॑ । वृषा॑ । आ । वि॒श॒ ॥ ९.२.१
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:2» मन्त्र:1
| अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:18» मन्त्र:1
| मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:1
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सौम्यस्वभाव ! और (देववीः) दिव्य गुणयुक्त परमात्मन् ! आप (पवस्व) हमें पवित्र करें और (इन्दो) हे ऐश्वर्य्ययुक्त ! आप (रंह्या) शीघ्र ही (विश) हमारे हृदय में प्रवेश करें और (पवित्रं) पवित्र तथा (अति) अवश्य रक्षा करें ॥१॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा की कृपा से ही पवित्रता प्राप्त होती है और परमात्मा की कृपा से ही पुरुष सब प्रकार के ऐश्वर्य्य से सम्पन होता है। जिस पुरुष के मन में परमात्मदेव का आविर्भाव होता है, वह सौम्य स्वभावयुक्त होकर कल्याण को प्राप्त होता है ॥१॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सौम्यस्वभावयुक्त ! (देववीः) दिव्यगुणयुक्त परमात्मन् ! त्वम् (पवस्व) अस्मान् पवित्रान् कुरु किञ्च (इन्दो) हे ऐश्वर्य्ययुक्त परमात्मन् ! भवान् (इन्द्रम्) ऐश्वर्य्यं प्रापयतु तथा (वृषा) हे आनन्दवर्षुक ! त्वम् (रंह्या) वेगेन (विश) अस्मद्धृदयं विश (पवित्रम्) पवित्रान् कुरु तथा (अति) अवश्यं रक्ष ॥१॥