अवा॑वशन्त धी॒तयो॑ वृष॒भस्याधि॒ रेत॑सि । सू॒नोर्व॒त्सस्य॑ मा॒तर॑: ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
avāvaśanta dhītayo vṛṣabhasyādhi retasi | sūnor vatsasya mātaraḥ ||
पद पाठ
अवा॑वशन्त । धी॒तयः॑ । वृ॒ष॒भस्य॑ । अधि॑ । रेत॑सि । सू॒नोः । व॒त्सस्य॑ । मा॒तरः॑ ॥ ९.१९.४
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:19» मन्त्र:4
| अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:9» मन्त्र:4
| मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:4
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (धीतयः) सात प्रकृतियें (वृषभस्य) सब कामप्रद परमात्मा के (अधिरेतसि) कार्य में (अवावशन्त) संगत होती हैं (सूनोः वत्सस्य) जैसे वत्स के लिये (मातरः) गायें संगत होती हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - गऊ अपने बच्चे को दुग्ध पिलाकर जिस प्रकार परिपुष्ट करती है, इसी प्रकार प्रकृति अपने इस कार्यरूप ब्रह्माण्ड को अपने परमाण्वादि दुग्धों द्वारा परिपुष्ट करती है। तात्पर्य यह है कि प्रकृति इस जगत् का उपादान कारण है, परमात्मा निमित्त कारण है और यह संसार वत्ससमान प्रकृति और वृषभरूपी पुरुष का कार्य है ॥४॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (धीतयः) सप्त प्रकृतयः (वृषभस्य) सर्वकामप्रदस्य परमात्मनः (अधिरेतसि) कार्येषु (अवावशन्त) सङ्गता भवति (सूनोः वत्सस्य) यथा वत्सार्थं (मातरः) मातरो गावः सङ्गच्छन्ते तद्वत् ॥४॥