वृषा॑ पुना॒न आ॒युषु॑ स्त॒नय॒न्नधि॑ ब॒र्हिषि॑ । हरि॒: सन्योनि॒मास॑दत् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
vṛṣā punāna āyuṣu stanayann adhi barhiṣi | hariḥ san yonim āsadat ||
पद पाठ
वृषा॑ । पु॒ना॒नः । आ॒युषु॑ । स्त॒नय॑न् । अधि॑ । ब॒र्हिषि॑ । हरिः॑ । सन् । योनि॑म् । आ । अ॒स॒द॒त् ॥ ९.१९.३
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:19» मन्त्र:3
| अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:9» मन्त्र:3
| मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:3
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (वृषा) सब कामनाओं का देनेवाला (आयुषु पुनानः) सब मनुष्यों को पवित्र करता हुआ (अधि बर्हिषि स्तनयन्) प्रकृति में पञ्चतन्मात्रादि कारणों को उत्पन्न करता हुआ वह परमेश्वर (हरिः सन्) अज्ञानादिकों का नाश करता हुआ (योनिम् आसदत्) प्रकृतिरूप योनि को प्राप्त होता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा जब प्रकृति के साथ मिलता है अर्थात् अपनी कृति से प्रकृति में नाना प्रकार की चेष्टायें उत्पन्न करता है, तो प्रकृति में पञ्चतन्मात्रादि कार्य उत्पन्न होते हैं अर्थात् सूक्ष्म भूतों के कारण उत्पन्न होते हैं। इस कार्यावस्था में प्रकृतिरूप योनि अर्थात् उपादान कारण का परमात्मा आश्रयण करता है, जैसा कि ‘योनिश्चेह गीयते’ वे० १।४।२७। इस व्याससूत्र में भी योनिनाम प्रकृति का स्पष्ट है ॥३॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (वृषा) सर्वकामानां प्रदाता (आयुषु पुनानः) सर्वमनुष्येषु पवित्रतां जनयन् (अधि बर्हिषि स्तनयन्) प्रकृतिषु पञ्चतन्मात्रादिकारणान्युत्पादयन् स ईश्वरः (हरिः सन्) सर्वाण्यज्ञानानि नाशयन् (योनिम् आसदत्) प्रकृत्यात्मकयोनिं लभते ॥३॥