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त्वं सो॑म विप॒श्चितं॒ तना॑ पुना॒न आ॒युषु॑ । अव्यो॒ वारं॒ वि धा॑वसि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ soma vipaścitaṁ tanā punāna āyuṣu | avyo vāraṁ vi dhāvasi ||

पद पाठ

त्वम् । सो॒म॒ । विपः॒ऽचित॑म् । तना॑ । पु॒ना॒नः । आ॒युषु॑ । अव्यः॑ । वार॑म् । वि । धा॒व॒सि॒ ॥ ९.१६.८

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:16» मन्त्र:8 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:6» मन्त्र:8 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सौम्यस्वभाव परमात्मन् ! (त्वम्) आप (आयुषु) मनुष्यों में (विपःऽचितम् तना) विद्वान् को भली-भाँति (पुनानः) पवित्र करते हुए (अव्यः) रक्षा के लिये (वारम्) उस वरणशील को (वि धावसि) प्राप्त होते हो ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष परमात्मा का वरण करता है अर्थात् एकमात्र उसी पर विश्वास रखकर उसी को उपास्य देव ठहराता है, उसकी परमात्मा अवश्यमेव रक्षा करता है। वार शब्द का अर्थ यहाँ यह है कि ‘वृणुते इति वारः’ जो वरण करे, वह वार है। इसी प्रकार ‘सूते चराचरं जगदिति सोमः’ इस मन्त्र में सोम के अर्थ परमात्मा के हैं। तात्पर्य यह है कि उक्त परमात्मा की उपासना करनेवाला पुरुष सदैव कृतकार्य होता है, क्योंकि परमात्मा उसका रक्षक होता है, इसलिये उपासक के लिये परमात्मपरायण होना आवश्यक है ॥८॥ यह सोलहवाँ सूक्त और छठा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सौम्यस्वभाव परमात्मन् ! त्वं (आयुषु) मनुष्येषु (विपःऽचितम् तना) विद्वांसं सम्यक् प्रकारेण (पुनानः) पवित्रीकुर्वाणः (अव्यः) रक्षार्थम् (वारम्) उक्तवरीतारं विद्वांसं (वि धावसि) प्राप्नोषि ॥८॥ षोडशं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥