वांछित मन्त्र चुनें

आ तू न॑ इन्द्र क्षु॒मन्तं॑ चि॒त्रं ग्रा॒भं सं गृ॑भाय । म॒हा॒ह॒स्ती दक्षि॑णेन ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā tū na indra kṣumantaṁ citraṁ grābhaṁ saṁ gṛbhāya | mahāhastī dakṣiṇena ||

पद पाठ

आ । तु । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । क्षु॒ऽमन्त॑म् । चि॒त्रम् । ग्रा॒भम् । सम् । गृ॒भ॒य॒ । म॒हा॒ऽह॒स्ती । दक्षि॑णेन ॥ ८.८१.१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:81» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:37» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:9» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे भगवन् ! आपकी कृपा से हम लोगों को (अवद्ये) निन्दा, अपयश, ईर्ष्या आदि दुर्गुण (सीम्) किसी प्रकार (मा+भाक्) प्राप्त न हों, (काष्ठा) जीवन की अन्तिम दशा (उर्वी) बहुत विस्तीर्ण है अर्थात् जीवन के दिन अभी बहुत हैं, अतः हम लोगों को कोई अपकीर्ति प्राप्त न हो। हे ईश ! (धनं+हितम्) आपने इस जगत् में बहुत धन स्थापित किया है, (अरत्नयः) जगत् के असुखकारी जन (अपावृक्ता) जन-समाज से पृथक् होवें ॥८॥
भावार्थभाषाः - प्रत्येक मनुष्य को उचित है कि किसी स्वार्थवश किसी की निन्दा वा स्तुति न करे, अन्यथा संसार में अनेक अशान्तियाँ फैलती हैं ॥८॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे भगवन् ! तव कृपया। अस्मान्। अवद्ये=अवद्या=निन्दा। सीम्=सर्वतः। मा भाक्। काष्ठा=अन्तिमा दशा। उर्वी=विस्तृता। धनं=सर्वत्र। हितं=निहितम्। अरत्नयः=अरममाणाः शत्रवः। अपावृक्ता अस्मत्तः पृथग्भूता भवन्तु ॥८॥