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आदीं॑ शव॒स्य॑ब्रवीदौर्णवा॒भम॑ही॒शुव॑म् । ते पु॑त्र सन्तु नि॒ष्टुर॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ād īṁ śavasy abravīd aurṇavābham ahīśuvam | te putra santu niṣṭuraḥ ||

पद पाठ

आत् । ई॒म् । श॒व॒सी । अ॒ब्र॒वी॒त् । औ॒र्ण॒ऽवा॒भम् । अ॒ही॒शुव॑म् । ते । पु॒त्र॒ । स॒न्तु॒ । निः॒ऽतुरः॑ ॥ ८.७७.२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:77» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:29» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:2


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शिव शंकर शर्मा

पुनः उस अर्थ को विस्पष्ट करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमेश्वर ! (यद्) जब-जब तू (दस्युहा+अभवः) इस संसार के चोर, डाकू महामारी, प्लेग आदि निखिल विघ्नों का विनाश करता है, तब तू (उभे+रोदसी) ये दोनों द्युलोक और पृथिवीलोक (क्रक्षमाणम्+त्वा) तुझ रक्षक की कीर्ति को (अनु+अकृपेताम्) क्रमपूर्वक गावें ॥११॥
भावार्थभाषाः - जब-जब मनुष्य के ऊपर आपत्तियाँ आकर डरा जाएँ, तब-तब उसको प्रत्येक नरनारी धन्यवाद दे, उसकी कीर्ति गावे और परस्पर साहाय्य कर ईश्वर को समर्पण करे ॥११॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमर्थं विस्पष्टयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! यद्=यदा त्वम्। दस्युहा= समस्तचोरादिविघ्नविनाशकः। अभवः=भवसि। तदा। उभे+रोदसी=द्यावापृथिव्यौ। क्रक्षमाणम्=रक्षयन्तं त्वा। अन्वकृपेताम्=गायेताम् ॥११॥