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ज॒ज्ञा॒नो नु श॒तक्र॑तु॒र्वि पृ॑च्छ॒दिति॑ मा॒तर॑म् । क उ॒ग्राः के ह॑ शृण्विरे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

jajñāno nu śatakratur vi pṛcchad iti mātaram | ka ugrāḥ ke ha śṛṇvire ||

पद पाठ

ज॒ज्ञा॒नः । नु । श॒तऽक्र॑तुः । वि । पृ॒च्छ॒त् । इति॑ । मा॒तर॑म् । के । उ॒ग्राः । के । ह॒ । शृ॒ण्वि॒रे॒ ॥ ८.७७.१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:77» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:29» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:1


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! इस जगत् को (ओजसा+सह) बल से (उत्तिष्ठन्) उठाता हुआ अर्थात् इसको बल से युक्त करता हुआ और (शिप्रे) हनुस्थानीय द्युलोक और पृथिवीलोक को (पीत्वी) उपद्रवों से बचाता हुआ तू दुष्टों को (अवेपयः) डरा। हे प्रभो ! (चमू) इन द्युलोक भूलोकों के मध्य (सुतम्) विराजित (सोमम्) सोम आदि सकल पदार्थों को कृपादृष्टि से देख ॥१०॥
भावार्थभाषाः - वही प्रभु सबको बल और शक्ति देता और वही रक्षक है, अन्य नहीं ॥१०॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! इदं जगत्। ओजसा सह=बलेन सार्धम्। उत्तिष्ठन्=उत्थापयन्। शिप्रे=द्यावापृथिव्यौ। हनुस्थानीयौ। पीत्वी=पालयित्वा। दुष्टान्। अवेपयः=कम्पय। तथा। चमू=द्यावापृथिव्यौ। तयोर्मध्ये सुतं+सोमम्। रक्ष ॥१०॥