तस्मै॑ नू॒नम॒भिद्य॑वे वा॒चा वि॑रूप॒ नित्य॑या । वृष्णे॑ चोदस्व सुष्टु॒तिम् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
tasmai nūnam abhidyave vācā virūpa nityayā | vṛṣṇe codasva suṣṭutim ||
पद पाठ
तस्मै॑ । नू॒नम् । अ॒भिऽद्य॑वे । वा॒चा । वि॒ऽरू॒प॒ । नित्य॑या । वृष्णे॑ । चो॒द॒स्व॒ । सु॒ऽस्तु॒तिम् ॥ ८.७५.६
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:75» मन्त्र:6
| अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:25» मन्त्र:1
| मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:6
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शिव शंकर शर्मा
वही पुनः प्रार्थित होता है।
पदार्थान्वयभाषाः - (यविष्ठ) हे जगन्मिश्रणकारी (सहसः+सूनो) हे जगदुत्पादक (आहुत) हे संसार में प्रविष्ट ! (यत्) जिस कारण (त्वम्+ह) तू (ऋत+वा) सत्यवान् और (यज्ञियः+भुवः) परम पूज्य है, अतः तू सर्वत्र प्रार्थित होता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - यविष्ठ्य=जीव से जगत् को और सूर्य्यादि लोकों को परस्पर मिलानेवाला होने से वह यविष्ठ्य कहाता है। आहुत, इसको उत्पन्न कर परमात्मा ने इसमें अपने को होम कर दिया, ऐसा वर्णन बहुधा आता है, अतः वह आहुत है। अन्यत् स्पष्ट है ॥३॥
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शिव शंकर शर्मा
स एव प्रार्थ्यते।
पदार्थान्वयभाषाः - हे यविष्ठ्य=जगतो मिश्रणकारिन् ! हे सहसः+सूनो=सहसा बलेन यदुत्पाद्यते तत् सहो जगत्। सूते जनयतीति सूनुर्जनयिता। हे जगतो जनयितः ! हे आहुत=संसारप्रविष्ट ! यद्=यस्मात्। त्वं+ह। तावा=सत्यवान्। यज्ञियश्च=पूज्यश्च। भुवः=भवसि। अतः सर्वत्र प्रार्थ्यसे ॥३॥