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अव॑न्त॒मत्र॑ये गृ॒हं कृ॑णु॒तं यु॒वम॑श्विना । अन्ति॒ षद्भू॑तु वा॒मव॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

avantam atraye gṛhaṁ kṛṇutaṁ yuvam aśvinā | anti ṣad bhūtu vām avaḥ ||

पद पाठ

अव॑न्तम् । अत्र॑ये । गृ॒हम् । कृ॒णु॒तम् । यु॒वम् । अ॒श्वि॒ना॒ । अन्ति॑ । सत् । भू॒तु॒ । वा॒म् । अवः॑ ॥ ८.७३.७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:73» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:19» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:7


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शिव शंकर शर्मा

फिर उसी अर्थ को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विद्वय ! (राजा और सचिव) इस समय (कुह) कहाँ आप दोनों (स्थः) हैं, (कुह) कहाँ गए हुए हैं। (कुह) कहाँ (श्येना+इव) दो श्येन पक्षी के समान उड़ कर बैठे हुए हैं, व्यर्थ इधर-उधर आपका जाना उचित नहीं। जहाँ कहीं हों, वहाँ से आकर प्रजाओं की रक्षा कीजिये। अन्ति० ॥४॥
भावार्थभाषाः - प्रजाओं के निकट यदि राजा या राजसाहाय्य न पहुँचे, तो जहाँ वे हों, वहाँ से उनको बुला लाना चाहिये। राजा सर्वकार्य को छोड़ इस रक्षाधर्म का सब प्रकार से पालन करे ॥४॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमर्थमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विनौ ! युवाम्। इदानीं कुह=क्वस्थो भवथो वर्त्तेथे। कुह=क्व जग्मथुर्गच्छथः। कुह क्व च। श्येना=श्येनौ विहगौ इव। पेतथुः=पतथः। यत्र कुत्र च भवथस्तस्मात् स्थानादागत्य प्रजारक्षणं कुरुतम्। मुधैव इतश्चेतश्च मा गमतम् अन्ति गतम् ॥४॥