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आ नो॒ गव्ये॑भि॒रश्व्यै॑: स॒हस्रै॒रुप॑ गच्छतम् । अन्ति॒ षद्भू॑तु वा॒मव॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā no gavyebhir aśvyaiḥ sahasrair upa gacchatam | anti ṣad bhūtu vām avaḥ ||

पद पाठ

आ । नः॒ । गव्ये॑भिः । अश्व्यैः॑ । स॒हस्रैः॑ । उप॑ । ग॒च्छ॒त॒म् । अन्ति॑ । सत् । भू॒तु॒ । वा॒म् । अवः॑ ॥ ८.७३.१४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:73» मन्त्र:14 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:14


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शिव शंकर शर्मा

फिर उसी अर्थ को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - राजा को सदा निरालस्य होना चाहिये। वे प्रजाकार्य्यों में सदा जागरित होवें, यह शिक्षा इससे दी जाती है। यथा−हे राजा और अमात्य ! (वाम्) आप दोनों के विषय में (पुराणवत्) अतिवृद्ध (जरतोः+इव) जराजीर्ण दो पुरुषों के समान (इदम्, किम्) यह क्या अयोग्य वस्तु (शस्यते) कही जाती है। जैसे अतिवृद्ध जीर्ण पुरुष वारंवार आहूत होने पर भी कहीं नहीं जाते, तद्वत् आप दोनों के सम्बन्ध में यह क्या किम्वदन्ती है। इसको दूर कीजिये ॥११॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमर्थमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - सदाऽनलसेन नृपेण भाव्यं प्रजाकार्य्येषु सदा जागरितव्यमिति शिक्षते। यथा हे अश्विनौ ! वां=युवयोर्विषये। पुराणवत्=पुराणयोः। जरतोः=जीर्णयोः पुरषयोरिव। किमिदमयोग्यं वस्तु शस्यते प्रजाभिरुच्यते। यथा जीर्णौ वृद्धौ पुरुषौ पुनः पुनराहूतावपि चलनासामर्थ्यान्न कुत्रापि शीघ्रं गच्छतस्तथैव युवयोर्विषये किम्वदन्ती वर्तते इति महदाश्चर्य्यम्। अन्ति० ॥११॥