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आदू॒ नु ते॒ अनु॒ क्रतुं॒ स्वाहा॒ वर॑स्य॒ यज्य॑वः । श्वा॒त्रम॒र्का अ॑नूष॒तेन्द्र॑ गो॒त्रस्य॑ दा॒वने॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ād ū nu te anu kratuṁ svāhā varasya yajyavaḥ | śvātram arkā anūṣatendra gotrasya dāvane ||

पद पाठ

आत् । ऊँ॒ इति॑ । नु । ते॒ । अनु॑ । क्रतु॑म् । स्वाहा॑ । वर॑स्य । यज्य॑वः । श्वा॒त्रम् । अ॒र्काः । अ॒नू॒ष॒त॒ । इन्द्र॑ । गो॒त्रस्य॑ । दा॒वने॑ ॥ ८.६३.५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:63» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:42» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:5


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शिव शंकर शर्मा

इन्द्र की स्तुति करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यों ! (सोमपृष्ठासः) सोमलता आदि ओषधियों से संयुक्त पृष्ठवाले (अद्रयः) स्थावर पर्वत आदिकों ने भी उस (दिवः+मान्म्) द्युलोक के निर्माणकर्त्ता और प्रकाशप्रदाता को (न+उत्सदन्) नहीं त्यागा है और न त्यागते हैं, क्योंकि वे पर्वत आदि भी नाना पदार्थों से भूषित हो उसी के महत्त्व को दिखला रहे हैं। तब मनुष्य उसको कैसे त्यागे, यह इसका आशय है। अतः हे बुद्धिमानो ! उसके लिये (उक्था) पवित्र वाक्य और (ब्रह्म+च) स्तोत्र (शंस्या) वक्तव्य है। अर्थात् उसकी प्रसन्नता के लिये तुम अपनी वाणी को प्रथम पवित्र करो और उसके द्वारा उसकी स्तुति गाओ ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यों ! जब स्थावर भी उसका महत्त्व दिखला रहे हैं, तब तुम वाणी और ज्ञान प्राप्त करके भी यदि उसकी महती कीर्ति को न दिखलाते, गाते, तो तुम महा कृतघ्न हो ॥२॥
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शिव शंकर शर्मा

इन्द्रः स्तूयते।

पदार्थान्वयभाषाः - सोमपृष्ठासः=सोमलतादिसंयुक्तपृष्ठाः। अद्रयः=स्थावराः पर्वता अपि। तं दिवोमानं=द्युलोकस्य निर्मातारं-ईश्वरम्। नोत्सदन्=न त्यक्तवन्तः=न च त्यजन्ति। तर्हि मनुष्यास्तं कथं त्यजेयुरित्याशयः। अतो हे मनुष्याः ! तमुद्दिश्य। उक्था=उक्थानि=पवित्राणि वाक्यानि। ब्रह्म च= ब्रह्माणि=स्तोत्राणि च। युष्माभिः। शंस्या=शंसनीयानि= वक्तव्यानीत्यर्थः ॥२॥