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अद्रो॑घ॒मा व॑होश॒तो य॑विष्ठ्य दे॒वाँ अ॑जस्र वी॒तये॑ । अ॒भि प्रयां॑सि॒ सुधि॒ता व॑सो गहि॒ मन्द॑स्व धी॒तिभि॑र्हि॒तः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adrogham ā vahośato yaviṣṭhya devām̐ ajasra vītaye | abhi prayāṁsi sudhitā vaso gahi mandasva dhītibhir hitaḥ ||

पद पाठ

अद्रो॑घम् । आ । व॒ह॒ । उ॒श॒तः । य॒वि॒ष्ठ्य॒ । दे॒वान् । अ॒ज॒स्र॒ । वी॒तये॑ । अ॒भि । प्रयां॑सि । सु॒ऽधि॒ता । आ । व॒सो॒ इति॑ । ग॒हि॒ । मन्द॑स्व । धी॒तिऽभिः॑ । हि॒तः ॥ ८.६०.४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:60» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:32» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:4


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शिव शंकर शर्मा

प्रथम अग्नि नाम से परमात्मा की स्तुति करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे सर्वशक्ते सर्वाधार ईश ! (त्वा) तुझको ही (वृणीमहे) हम उपासक स्तुति, प्रार्थना, पूजा इत्यादि के लिये स्वीकार करते हैं। तू (अग्निभिः) सूर्य्य अग्नि प्रभृति आग्नेय शक्तियों के साथ (आ+याहि) इस संसार में आ और आकर इसकी सुरक्षा कर। जो तू (होतारम्) सर्वधनप्रदाता है। हे ईश ! पुनः (प्रयता) अपने-२ कार्य्य में नियत और (हविष्मती) अग्निहोत्रादि शुभकर्मवती प्रजा (त्वाम्+आ+अनक्तु) तुझको ही अलङ्कृत करें। जो तू (यजिष्ठम्) परम यजनीय है, वह तू (बर्हिः) हृदय प्रदेश को (आसदे) प्राप्त कर वहाँ बैठ ॥१॥
भावार्थभाषाः - अग्नि यह नाम ईश्वर का परम प्रसिद्ध है। उसकी स्तुति प्रार्थना हम मनुष्य सदा करें ॥१॥
टिप्पणी: १−यह सूक्त भौतिक अग्नि पक्ष में भी घटता है।
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शिव शंकर शर्मा

प्रथममग्निनाम्ना परमात्मानं स्तौति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! सर्वशक्ते ! सर्वाधार ईश ! त्वा=त्वां वयं वृणीमहे। त्वम्। अग्निभिः=सूर्य्यादिभिरग्निभिरिह रक्षणाय आयाहि। कीदृशम्। होतारम्=दातारम्। पुनः। यजिष्ठं=अतिशयेन यजनीयम्। पुनः। त्वा=त्वाम्। प्रयता=नियता। हविष्मती=अग्निहोत्रादिशुभकर्मवती प्रजा। आनक्तु=अलंकरोतु। हे भगवन् ! त्वं बर्हिः=हृदयप्रदेशम्। आसदे=आसद्योपविश ॥१॥