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येन॒ वंसा॑म॒ पृत॑नासु॒ शर्ध॑त॒स्तर॑न्तो अ॒र्य आ॒दिश॑: । स त्वं नो॑ वर्ध॒ प्रय॑सा शचीवसो॒ जिन्वा॒ धियो॑ वसु॒विद॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yena vaṁsāma pṛtanāsu śardhatas taranto arya ādiśaḥ | sa tvaṁ no vardha prayasā śacīvaso jinvā dhiyo vasuvidaḥ ||

पद पाठ

येन॑ । वंसा॑म । पृत॑नासु । शर्ध॑तः । तर॑न्तः । अ॒र्यः । आ॒ऽदिशः॑ । सः । त्वम् । नः॒ । व॒र्ध॒ । प्रऽय॑सा । श॒ची॒व॒सो॒ इति॑ शचीऽवसो । जिन्व॑ । धियः॑ । व॒सु॒ऽविदः॑ ॥ ८.६०.१२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:60» मन्त्र:12 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:34» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:12


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे सर्वगत (ऊर्जाम्+पते) हे बलाधिदेव महाबलप्रद ईश ! (नः) हम जीवों को (एकया) मधुरमयी वाणी से (पाहि) रक्षा कर, (तिसृभिः+गीर्भिः) लौकिकी, वैदिकी और आध्यात्मिकी वाणियों से (पाहि) हमारी रक्षा कर, (वसो) हे वासदाता सर्वत्रवासी देव ! (चतसृभिः) तीन पूर्वोक्त एक दैवी इन चारों वाणियों से तू हमको पाल ॥९॥
भावार्थभाषाः - प्रथम मनुष्य अपनी वाणी मधुर और सत्य बनावें, तब वेद-शास्त्रों के वाक्यों को इस प्रकार पढ़ें और व्याख्यान करें कि लोग मोहित हों और उनके हृदय से अज्ञान निकल बाहर भाग जाय, तब आत्मा के अभ्यन्तर से जो-२ विचार उत्पन्न हों, उन्हें बहुत यत्न से लिखता जाय, उन पर सदा ध्यान देवे और उन्हें बढ़ाता जाय। तत्पश्चात् आत्मा के साथ जो ईश्वरीय आदेश हों, उन्हें एकान्त और निश्चिन्त हो विचारे और जगत् को सुनावे। यह तब ही हो सकता है, जब अन्तःकरण शुद्ध हो ॥९॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने सर्वगत ! नोऽस्मान्। एकया गिरा पाहि। उत द्वितीयया गिरा पाहि। उत तिसृभिर्गीर्भिः पाहि। हे ऊर्जां पते ! हे वसो ! चतसृभिर्गीर्भिः पाहि ॥९॥