अ॒र्वाञ्चं॑ त्वा पुरुष्टुत प्रि॒यमे॑धस्तुता॒ हरी॑ । सो॒म॒पेया॑य वक्षतः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
arvāñcaṁ tvā puruṣṭuta priyamedhastutā harī | somapeyāya vakṣataḥ ||
पद पाठ
अ॒र्वाञ्च॑म् । त्वा॒ । पु॒रु॒ऽस्तु॒त॒ । प्रि॒यमे॑धऽस्तुता । हरी॑ । सो॒म॒ऽपेया॑य । वक्षतः ॥ ८.६.४५
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:6» मन्त्र:45
| अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:17» मन्त्र:5
| मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:45
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शिव शंकर शर्मा
इससे इन्द्र की स्तुति की जाती है।
पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुष्टुत) हे बहुगीतगुण परमात्मन् ! (त्वा) तुझको (प्रियमेधस्तुता) शुभकर्मों में निरत ऋष्यादिजनों से सदा प्रशंसित (हरी) स्थावर जङ्गम संसार (सोमपेयाय) पदार्थों के ऊपर कृपादृष्टि करने के लिये (अर्वाञ्चम्) हम लोगों की ओर (वक्षतः) ले आवें ॥४५॥
भावार्थभाषाः - ईशरचित जो स्थावर जङ्गम द्विविध पदार्थ दीखते हैं, वे ही इन्द्र को प्रकाशित कर सकते हैं, वे विद्वान् ईश्वर के महत्त्व को जान शान्ति पाते हैं ॥४५॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुष्टुत) हे बहुस्तुत परमात्मन् ! (प्रियमेधस्तुता, हरी) विद्वानों की प्रशंसनीय हरणशील शक्तियें (सोमपेयाय) सौम्यस्वभाव का पान करने के लिये (त्वा) आपको (अर्वाञ्चम्) हमारे अभिमुख (वक्षतः) वहन करें ॥४५॥
भावार्थभाषाः - हे अनेकानेक विद्वानों द्वारा स्तुत प्रभो ! आप ऐसी कृपा करें कि हम विद्वानों की प्रशंसनीय शक्तियें आपको प्राप्त करानेवाली हों अर्थात् हमारा वेदाभ्यास तथा वैदिक कर्मों का अनुष्ठान हमारे लिये सुखप्रद हो, यह प्रार्थना है ॥४५॥
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शिव शंकर शर्मा
इन्द्रः स्तूयते।
पदार्थान्वयभाषाः - हे पुरुष्टुत=पुरुभिर्बहुभिः सर्वैर्विद्वद्भिः स्तुत ! त्वा=त्वाम्। प्रियमेधस्तुता=प्रियमेधस्तुतौ=प्रिया रुचिकराः, मेधा यज्ञाः शुभकर्माणि येषां ते प्रियमेधा=यज्ञकर्मनिरताः। तैः। स्तुतौ=गीतगुणौ। हरी=स्थावरजङ्गमात्मरूपौ संसारौ। सोमपेयाय=सोमानां पदार्थानामनुग्रहाय। अर्वाञ्चमस्मदभिमुखम्। वक्षतः=वहतामानयताम् ॥४५॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुष्टुत) हे बहुस्तुत ! (प्रियमेधस्तुता, हरी) विद्वद्भिः प्रशंसनीये हरणशीलशक्ती (सोमपेयाय) सौम्यस्वभावानुभवाय (त्वा) त्वाम् (अर्वाञ्चम्) ममाभिमुखम् (वक्षतः) वहताम् ॥४५॥