अनु॑ त्वा॒ रोद॑सी उ॒भे च॒क्रं न व॒र्त्येत॑शम् । अनु॑ सुवा॒नास॒ इन्द॑वः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
anu tvā rodasī ubhe cakraṁ na varty etaśam | anu suvānāsa indavaḥ ||
पद पाठ
अनु॑ । त्वा॒ । रोद॑सी॒ इति॑ । उ॒भे इति॑ । च॒क्रम् । न । व॒र्ति॒ । एत॑शम् । अनु॑ । सु॒वा॒नासः॑ । इन्द॑वः ॥ ८.६.३८
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:6» मन्त्र:38
| अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:16» मन्त्र:3
| मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:38
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शिव शंकर शर्मा
इससे ईश्वर की महिमा दिखलाते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - हे भगवन् ! (उभे) दोनों (रोद१सी) परस्पर रोकनेवाले द्युलोक और पृथिवीलोक अर्थात् यह सम्पूर्ण जगत् (त्वा) तेरे ही (अनु+वर्ति) पीछे-२ चलते हैं अर्थात् यह सम्पूर्ण संसार तेरे ही अधीन है। इसमें दृष्टान्त देते हैं−(चक्रम्+न) जैसे चक्र=रथचक्र (एतश२म्) घोड़े के (अनु+वर्ति) पीछे-२ चलता है। और (सुवानासः) अनुरागों को सर्वत्र सींचनेवाले ये (इन्द३वः) सकल पदार्थ भी (अनु) तेरे ही अनुगामी हैं, ऐसी तेरी महान् महिमा है ॥३८॥
भावार्थभाषाः - कैसा ईश्वर का महत्त्व है, हे तत्त्वविद् जनो ! इसकी महिमा देखो, यह समस्त विविध सृष्टि ईश्वर की आज्ञा के अनुकूल चलती है। अतः इसी को गाओ ॥३८॥
टिप्पणी: १−रोदसी=द्युलोक और पृथिवीलोक का एक नाम रोदसी है, क्योंकि परस्पर एक दूसरे के अवरोधन में सहायक हैं। और जिस कारण उपरिष्ठ भाग का एक नाम द्युलोक और अधःस्थ भाग का पृथिवी है, अतः इन दोनों शब्दों से सम्पूर्ण जगत् का ग्रहण होता है। २−एतश−यह नाम घोड़े का भी है “एतस्मिन् शेते” इसकी पीठ के ऊपर आदमी अच्छे प्रकार बैठ और सो सकता है, इसी कारण एतश नाम जीव का भी है, क्योंकि इस शरीर में यह निवास करता है, इत्यादि। ३−इन्दु−लौकिक संस्कृत में यह केवल चन्द्रवाचक होता है, परन्तु वेद में सोम और सर्वपदार्थवाचक भी होता है। यहाँ यह विलक्षणता जाननी चाहिये कि परमदेव और पदार्थ के नाम एक ही धातु से बने हुए हैं। इदि धातु से इन्द्र और इन्दु दोनों शब्द बनते हैं। कार्य्यकारण का यह अभेदसूचक है। पिता और पुत्र में यह परमस्नेह दिखाता है, परम लीलावान् परमात्मा जैसा है, सृष्टि भी उसकी वैसी ही होनी चाहिये। कोई भी बुद्धिमान् शिल्पी अपने हाथ से कुरूप वस्तु नहीं बनाता। हे मनुष्यों ! जब ये अवाक् पदार्थ अपने सौन्दर्य से जगत् को सुशोभित कर रहे हैं, तब तुम्हारे क्या कर्त्तव्य हैं, यह पुनः विचार करो ॥३८॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (उभे, रोदसी) द्युलोक और पृथिवीलोक (त्वा) आपका (चक्रम्, एतशं, न) जैसे चक्र अश्व का, इसी प्रकार (अनुवर्ति) अनुवर्तन करते हैं (सुवानासः, इन्दवः) उत्पन्न ऐश्वर्यसम्बन्धी पदार्थ (अनु) आप ही का अनुवर्तन करते हैं ॥३८॥
भावार्थभाषाः - हे परमेश्वर ! जिस प्रकार अश्व अपने चक्र में घूमता है, इसी प्रकार द्युलोक तथा पृथिवीलोकादि सब लोक-लोकान्तर आपके नियम में बँधे हुए अपनी परिधि में परिभ्रमण करते हैं और सम्पूर्ण पदार्थ, जो आप ही का अनुवर्तन करते हैं, हे प्रभो ! वह कृपा करके हमें प्राप्त कराएँ, ताकि हम लोग आपके यशकीर्तन में सदा तत्पर रहें ॥३८॥
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शिव शंकर शर्मा
अनयेशस्य महिमानं दर्शयति।
पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! उभे=द्वे अपि। रोदसी=परस्पररोधिन्यौ=द्यावापृथिव्यौ। त्वा=त्वामेव। अनुवर्ति=अनुवर्तते तवाधीनमिदं सर्वं जगदस्तीत्यर्थः। रोदसीशब्दः सर्वजगदुपलक्षकः। अस्मिन् विषये दृष्टान्तः−चक्रं न=रथचक्रं यथा। एतशमश्वम् अनुवर्ति। यथा यथा अश्वो गच्छति तथा तथा चक्रमनुगच्छति। पुनः। हे इन्द्र ! सुवानासोऽभिषिञ्चन्तः सर्वतो मनोहरतां प्रयच्छन्तः। इमे इन्दवः=सर्वे पदार्थाः। त्वामेव अनु=अनुवर्तन्ते। वेदेषु इन्द्रचन्द्रसोमादिशब्दाः पदार्थवाचिनः ॥३८॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (उभे, रोदसी) उभे द्यावापृथिव्यौ (त्वा) त्वाम् (चक्रम्, एतशम्, न) चक्रमश्वमिव (अनुवर्ति) अनुवर्तते (सुवानासः, इन्दवः) उत्पन्ना ऐश्वर्यशालिपदार्थाः (अनु) अनुवर्तन्ते ॥३८॥