त्वामिद्वृ॑त्रहन्तम॒ जना॑सो वृ॒क्तब॑र्हिषः । हव॑न्ते॒ वाज॑सातये ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
tvām id vṛtrahantama janāso vṛktabarhiṣaḥ | havante vājasātaye ||
पद पाठ
त्वाम् । इत् । वृ॒त्र॒ह॒न्ऽत॒म॒ । जना॑सः । वृ॒क्तऽब॑र्हिषः । हव॑न्ते । वाज॑ऽसातये ॥ ८.६.३७
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:6» मन्त्र:37
| अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:16» मन्त्र:2
| मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:37
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शिव शंकर शर्मा
ईश्वर ही पूज्य है, अन्य नहीं, यह इससे दिखलाते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (वृत्रहन्तम) हे सर्वविघ्नविनाशक सर्वोपद्रवनिवारक महादेव (वृक्तबर्हिषः) यज्ञादि शुभकर्मों में आसक्त (जनासः) मनुष्य (वाजसातये) ज्ञानप्राप्त्यर्थ (त्वाम्+इत्) तुझको ही (हवन्ते) बुलाते हैं, अन्य देवों को नहीं। वृत्र शब्द के प्रयोग वेदों में बहुत हैं। वृत्र नाम अज्ञान, अन्धकार, विघ्न और उपद्रव आदि का है। उसका भी विनाशक परमात्मा ही है, अतः वह वृत्रहन्ता, वृत्रघ्न इत्यादि कहलाता है ॥३७॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् सर्वकार्यसिद्ध्यर्थ परमात्मा को ही पूजते हैं, परन्तु मूढ़ उन उन विधियों से अन्य जड़ देवों की अर्चना करते हैं, किन्तु उनसे काम न पाकर सदा वे क्लेश में रहते हैं, यह जानकर सब उसी को पूजें और गावें ॥३७॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (वृत्रहन्तम) हे अज्ञाननिवारक ! (वृक्तबर्हिषः, जनासः) विविक्तस्थल में आसीन उपासक लोग (वाजसातये) ऐश्वर्य्य की प्राप्ति के लिये (त्वाम्, इत्, हवन्ते) आपकी ही उपासना करते हैं ॥३७॥
भावार्थभाषाः - हे अज्ञानान्धतम के निवारक प्रभो ! भिन्न-भिन्न स्थानों में समाधिस्थ हुए उपासक लोग आपकी उपासना में प्रवृत्त हैं। कृपा करके आप उनको ऐश्वर्य्य प्रदान करें, ताकि वह आपका गुणगान करते हुए निरन्तर आप ही की उपासना में तत्पर रहें ॥३७॥
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शिव शंकर शर्मा
ईश्वर एव पूज्यो नान्योऽस्तीत्यनया दर्श्यते।
पदार्थान्वयभाषाः - हे वृत्रहन्तम=वृत्राणामावृत्य तिष्ठतां सर्वेषामुपद्रवाणां विघ्नानाञ्च अतिशयेन हन्तः। विनाशयितः परमात्मन् ! वृक्तबर्हिषः=यज्ञानुष्ठानरताः। जनासः=जनाः। वाजसातये=वाजस्य=ज्ञानस्य, सातये=प्राप्तये। त्वामित्=त्वामेव। हवन्ते=आह्वयन्ति ॥३७॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (वृत्रहन्तम) हे अज्ञाननिवारक ! (वृक्तबर्हिषः, जनासः) एकान्तासना उपासकाः (वाजसातये) ऐश्वर्यप्राप्तये (त्वाम्, इत्) त्वामेव (हवन्ते) उपासते ॥३७॥