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देवता: इन्द्र: ऋषि: वत्सः काण्वः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

इ॒मां म॑ इन्द्र सुष्टु॒तिं जु॒षस्व॒ प्र सु माम॑व । उ॒त प्र व॑र्धया म॒तिम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imām ma indra suṣṭutiṁ juṣasva pra su mām ava | uta pra vardhayā matim ||

पद पाठ

इ॒माम् । मे॒ । इ॒न्द्र॒ । सु॒ऽस्तु॒तिम् । जु॒षस्व॑ । प्र । सु । माम् । अ॒व॒ । उ॒त । प्र । व॒र्ध॒य॒ । म॒तिम् ॥ ८.६.३२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:6» मन्त्र:32 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:15» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:32


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शिव शंकर शर्मा

इन्द्र की प्रार्थना करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र तू (मे) मेरी (इमाम्) इस (सुष्टुतिम्) सुन्दर स्तुति को (जुषस्व) ग्रहण कर और (सु) अच्छे प्रकार (माम्+प्र+अव) मुझको आपत्तियों से बचा। (उत) और (मतिम्) मेरी बुद्धि को (प्रवर्धय) अच्छी तरह से बढ़ा ॥३२॥
भावार्थभाषाः - सब वस्तु प्रथम ईश्वर को समर्पणीय है और सदा तत्त्वों के अभ्यास से बुद्धि तीक्ष्ण कर्तव्य है, यह इसका आशय है ॥३२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (इमाम्, मे, सुष्टुतिम्) इस मेरी सुन्दर स्तुति को (सुजुषस्व) सम्यक् सुनें (माम्) मुझे (प्राव) सम्यक् रक्षित करें (उत) और (मतिम्) मेरे ज्ञान को (प्रवर्धय) अत्यन्त बढ़ाएँ ॥३२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का भाव यह है कि हे परमेश्वर ! कृपा करके मेरी सब ओर से रक्षा करें और मेरे ज्ञान को प्रतिदिन बढ़ावें, ताकि मैं आपकी उपासना में प्रवृत्त हुआ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करूँ। हे प्रभो ! मेरी इस प्रार्थना को भले प्रकार सुनें ॥३२॥
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शिव शंकर शर्मा

इन्द्रस्य प्रार्थना क्रियते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! मे=मम। इमाम्=पुरोवर्तिनीम्। सुष्टुतिम्=शोभनां स्तुतिम्। जुषस्व=गृहाण। तथा। सु=शोभनम्। प्र=प्रकर्षेण। मामव=रक्ष। उत=अपि च। मम मतिं बुद्धिं च। प्रवर्धय ॥३२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (इमाम्, मे, सुष्टुतिम्) इमां मम शोभनां स्तुतिं (सुजुषस्व) सुष्ठु सेवस्व (माम्) मां च (प्राव) प्ररक्ष (उत) अथ (मतिम्) ज्ञानं च (प्रवर्धय) प्रकृष्टं वर्धय ॥३२॥