उ॒त त्यदा॒श्वश्व्यं॒ यदि॑न्द्र॒ नाहु॑षी॒ष्वा । अग्रे॑ वि॒क्षु प्र॒दीद॑यत् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
uta tyad āśvaśvyaṁ yad indra nāhuṣīṣv ā | agre vikṣu pradīdayat ||
पद पाठ
उ॒त । त्यत् । आ॒शु॒ऽअश्व्य॑म् । यत् । इ॒न्द्र॒ । नाहु॑षीषु । आ । अग्रे॑ । वि॒क्षु । प्र॒ऽदीद॑यत् ॥ ८.६.२४
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:6» मन्त्र:24
| अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:13» मन्त्र:4
| मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:24
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शिव शंकर शर्मा
पुनः इन्द्र की प्रार्थना करते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र परमदेव ! (नाहुषीषु१) मनुष्यसंबन्धी (विक्षु) प्रजाओं में (अग्रे) प्रत्यक्षरूप से (आश्वश्व्यम्) आशुगामी मन और इन्द्रिय सम्बन्धी अथवा शीघ्रगामी अश्वादि पशुसम्बन्धी (यद्) जो विज्ञान और धन (प्रदीदयत्) प्रकाशित हो रहा है (त्यत्+उत) वह धन भी मुझे दीजिये ॥२४॥
भावार्थभाषाः - जो-जो धन मनुष्यों में प्राप्त हो सके, उन-२ सब धनों को इधर-उधर से संग्रह करना उचित है, यह शिक्षा इससे देते हैं ॥२४॥
टिप्पणी: १−नहुष=यह मनुष्य का नाम है, नहुष नाम के एक राजा की भी कथा पौराणिक रीति पर आती है, इससे यहाँ सायण आदि दोनों अर्थ करते हैं ॥२४॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (त्यत्) वह (आश्वश्व्यम्) शीघ्रगामी अश्वादि सहित बल देने की इच्छा करें (यत्) जो बल (नाहुषीषु) मानुषी (विक्षु) प्रजाओं के (अग्रे) आगे (आ) चारों ओर से (प्रदीदयत्) दीप्तिमान् हो ॥२४॥
भावार्थभाषाः - हे सम्पूर्णं बलों के स्वामी परमेश्वर ! आप हमें शीघ्रगामी अश्वों सहित बल प्रदान करें, जो बल प्रजारक्षण के लिये पर्याप्त हो अर्थात् जो बल सभ्य प्रजाओं को सुख देनेवाला और अन्यायकरियों का नाशक हो, वह बल हमें दीजिये ॥२४॥
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शिव शंकर शर्मा
पुनरिन्द्रस्य प्रार्थना क्रियते।
पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! नाहुषीषु=नहुषा इति मनुष्यनाम। तत्सम्बन्धिनीषु। विक्षु=प्रजासु। अग्रे=पुरस्तात्। आश्वश्व्यम्=आशुगाम्यश्वसम्बन्धि। यद् विज्ञानं धनञ्च। प्रदीदयत्=प्रदीप्यते=प्रकाशते। त्यत्=तत्। उत अपि। तदपि धनम्। अस्मभ्यम्। आदर्षि=देहीति शेषः ॥२४॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अथ (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (त्यत्) तत् (आश्वश्व्यम्) शीघ्रगाम्यश्वादिसहितं बलं दातुमिच्छ (यत्) यद्बलम् (नाहुषीषु) मानुषीषु (विक्षु) प्रजासु (अग्रे) पुरतः (आ) समन्तात् (प्रदीदयत्) प्रदीप्येत ॥२४॥