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तवेदि॑न्द्र॒ प्रणी॑तिषू॒त प्रश॑स्तिरद्रिवः । य॒ज्ञो वि॑तन्त॒साय्य॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taved indra praṇītiṣūta praśastir adrivaḥ | yajño vitantasāyyaḥ ||

पद पाठ

तव॑ । इत् । इ॒न्द्र॒ । प्रऽनी॑तिषु । उ॒त । प्रऽश॑स्तिः । अ॒द्रि॒ऽवः॒ । य॒ज्ञः । वि॒त॒न्त॒साय्यः॑ ॥ ८.६.२२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:6» मन्त्र:22 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:13» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:22


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शिव शंकर शर्मा

इससे इन्द्र की स्तुति करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और भी (अद्रिवः) हे दण्डधारिन् (इन्द्र) इन्द्र ! परमदेव ! (तव+इत्) तेरी ही (प्रणीतिषु) उत्तम नियमों की (प्रशस्तिः) प्रशंसा की जाती है और उन ही नियमों को दिखलाने के लिये (यज्ञः) यज्ञ भी (वितन्तसाय्यः) विस्तीर्ण होते हैं ॥२२॥
भावार्थभाषाः - इन्द्र की उत्तम नीति को देख उससे मोहित हो मेधाविगण उसकी प्रशंसा करते और उसको दिखलाने के लिये विविध याग करते हैं ॥२२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उत्) और (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (प्रणीतिषु) प्रकृष्ट नीतिशास्त्र के विषय में (तव, इत्, प्रशस्तिः) आप ही की प्रशंसा है (अद्रिवः) हे वज्रशक्तिवाले ! (वितन्तसाय्यः) बड़े से बड़ा (यज्ञः) यज्ञ आप ही के लिये किया जाता है ॥२२॥
भावार्थभाषाः - हे परमेश्वर ! नीतिज्ञों में आप प्रशंसित नीतिमान् हैं, आपकी प्रसन्नतार्थ ही बड़े-बड़े यज्ञ किये जाते हैं। सो हे प्रभु ! आप हमें सम्पन्न करें, ताकि हम यज्ञों द्वारा आपकी उपासना करें, क्योंकि एकमात्र आप ही हमारे स्वामी और पूज्य हैं ॥२२॥
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शिव शंकर शर्मा

अनयेन्द्रः स्तूयते।

पदार्थान्वयभाषाः - उत=अपि च। हे अद्रिवः=दण्डधारिन् उग्रदेव। इन्द्र। तवेत्=तवैव। प्रणीतिषु=प्रणयनेषु नियमेषु तवैव नियमानामित्यर्थः। प्रशस्तिः=प्रशंसा। क्रियते। तथा। तदर्थमेव। यज्ञोऽपि। वितन्तसाय्यः=विस्तीर्णो भवति ॥२२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (उत्) अथ च (प्रणीतिषु) प्रकृष्टनीतिषु (तव, इत्, प्रशस्तिः) तवैव प्रशंसाऽस्ति (अद्रिवः) हे वज्रशक्तिक ! (वितन्तसाय्यः) प्रवृद्धः (यज्ञः) यज्ञस्तवैव भवति ॥२२॥