आ न॒: स्तोम॒मुप॑ द्र॒वत्तूयं॑ श्ये॒नेभि॑रा॒शुभि॑: । या॒तमश्वे॑भिरश्विना ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
ā naḥ stomam upa dravat tūyaṁ śyenebhir āśubhiḥ | yātam aśvebhir aśvinā ||
पद पाठ
आ । नः॒ । स्तोम॑म् । उप॑ । द्र॒वत् । तूय॑म् । श्ये॒नेभिः॑ । आ॒शुऽभिः॑ । या॒तम् । अश्वे॑भिः । अ॒श्वि॒ना॒ ॥ ८.५.७
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:5» मन्त्र:7
| अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:2» मन्त्र:2
| मण्डल:8» अनुवाक:1» मन्त्र:7
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शिव शंकर शर्मा
फिर उसी अर्थ को कहते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे पुण्यकृत राजन् और सभाध्यक्ष ! आप दोनों (श्येनेभिः) श्येन पक्षी के समान (आशुभिः) शीघ्रगामी (अश्वेभिः) अश्वों से युक्त रथ के द्वारा (नः) हम लोगों के (स्तोमम्) निवेदन को सुनने के लिये (द्रवत्) शीघ्र (तूयम्) शीघ्र ही विलम्ब न करके (उपायातम्) समीप आवें ॥७॥
भावार्थभाषाः - आवश्यक कार्य उपस्थित होने पर राजा को या कर्मचारी को निज गृह पर बुलाकर घटना निवेदन करे और राजा भी उसे सुन शीघ्र निर्णय करे ॥७॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे ज्ञानयोगी तथा कर्मयोगी ! आप (द्रवत्) उच्चारण किये हुए (नः, स्तोत्रम्, उप) हमारे स्तोत्र के अभिमुख (आशुभिः, श्येनेभिः) शीघ्रगामी शस्त्रों सहित (अश्वेभिः) अश्वों द्वारा (तूयम्) शीघ्र (आयातम्) आवें ॥७॥
भावार्थभाषाः - विद्वज्जनों की ओर से प्रार्थना है कि हे कर्मयोगिन् तथा ज्ञानयोगिन् ! हमारे क्षात्रधर्मसम्बन्धी स्तोत्रों के उच्चारणकाल में आप सशस्त्र शीघ्र आवें और आकर क्षात्रधर्म का महत्त्व तथा शस्त्रों की प्रयोगविधि का श्रवण करें, जिससे हमारा ज्ञान वृद्धि को प्राप्त हो ॥७॥
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शिव शंकर शर्मा
पुनस्तमर्थमाह।
पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विना=हे अश्विनौ राजानौ। युवाम्। श्येनेभिः=श्येनैः=श्येनविहगैरिव। आशुभिः=शीघ्रगामिभिः अश्वेभिः=अश्वैस्तुरङ्गैर्युक्तेन रथेन। द्रवत्तूयम्=शीघ्रं शीघ्रम्=शीघ्रमेव न विलम्बेन। नः=अस्माकं स्तोमं प्रार्थनापत्रं श्रोतुम्। उपायातम्=आगच्छतम् ॥७॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे ज्ञानयोगिकर्मयोगिणौ युवाम् (द्रवत्) उद्गीर्णम् (नः, स्तोमम्, उप) अस्माकं स्तोत्रमभि (आशुभिः, श्येनेभिः) श्रीघ्रगामिभिः शस्त्रैः सहितः (अश्वेभिः) अश्वैर्द्वारा (तूयम्) क्षिप्रम् (आयातम्) आगच्छतम् ॥७॥