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क॒दा वां॑ तौ॒ग्र्यो वि॑धत्समु॒द्रे ज॑हि॒तो न॑रा । यद्वां॒ रथो॒ विभि॒ष्पता॑त् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kadā vāṁ taugryo vidhat samudre jahito narā | yad vāṁ ratho vibhiṣ patāt ||

पद पाठ

क॒दा । वा॒म् । तौ॒ग्र्यः । वि॒ध॒त् । स॒मु॒द्रे । ज॒हि॒तः । न॒रा॒ । यत् । वा॒म् । रथः॑ । विऽभिः॑ । पता॑त् ॥ ८.५.२२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:5» मन्त्र:22 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:5» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:1» मन्त्र:22


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शिव शंकर शर्मा

समुद्र में भी नौकादिकों की राजा रक्षा करे, यह दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - राजा और कर्मचारियों से प्रजा जिज्ञासा करती है कि (नरा) हे सर्वनेता सर्वप्रतिनिधि राजन् और मन्त्रिवर्ग ! (कदा) किस-२ समय में (तौग्र्यः) नाविक का पुत्र (समुद्रे) समुद्र में (जहितः) त्यक्त अर्थात् समुद्र में गमन करता हुआ (वाम्) आपको सहायतार्थ (विधत्) बुलाता है (यद्) जब-जब (विभिः) विविध यन्त्रों से युक्त (वाम्+रथः) आपका विमानरूप रथ (पतात्) वहाँ पहुँचता है ॥२२॥
भावार्थभाषाः - वाणिज्य के लिये सामुद्रिक मार्ग को सदा ठीक रखना और जहाजों को विदेशों में भेजना भिजवाना भी राजकर्त्तव्य है ॥२२॥
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आर्यमुनि

अब ज्ञानयोगी तथा कर्मयोगी के यान का महत्त्व वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (नरा) हे नेता ! (यत्) जब (वाम्) आपका (रथः) रथ (विभिः) शीघ्रगामी शक्तियों से युक्त होकर (पतात्) उड़ता है, तब (वाम्) आपका (समुद्रे) समुद्र में (जहितः) रहनेवाला (तुग्र्यः) जलीयपदार्थ (कदा) कब (विधत्) कुछ कर सकता अर्थात् कुछ भी नहीं कर सकता ॥२२॥
भावार्थभाषाः - हे सब मनुष्यों के नेता ! जब सब शक्तियों से युक्त आपका शीघ्रगामी यान उड़ता है, तब समुद्र में रहनेवाला तुग्र्य=हिंसक जीवविशेष अथवा जल परमाणु आदि आपका कुछ भी नहीं कर सकते अर्थात् आप जल और स्थल में स्वच्छन्दतापूर्वक विचरते हैं, आपके लिये कहीं भी कोई रुकावट नहीं ॥२२॥
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शिव शंकर शर्मा

राजा समुद्रेऽपि नौकादि रक्षेदिति शास्ति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे नरा=सर्वेषां नेतारौ प्रतिनिधी राजानौ। कदा=कस्मिन् काले। तौग्र्यः=तुग्रस्य नाविकस्य पुत्रः। समुद्रे। जहितः=त्यक्तः=प्रक्षिप्तः सन्। वाम्=युवाम्। विधत्=साहाय्यार्थमाह्वयति। यद्=यदा-२। वाम्=युवयोः। रथः=विमानलक्षणः। विभिः=विविधयन्त्रैर्युक्तः। पतात्=पतति=गच्छति तत्र ॥२२॥
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आर्यमुनि

अथ तयोर्यानमहत्त्वं वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (नरा) हे नेतारौ ! (यत्) यदा (वाम्) युवयोः (रथः) यानम् (विभिः) शीघ्रतरगामिशक्तिभिर्युक्तः सन् (पतात्) उत्पतेत् तदा (वाम्) युवयोः (समुद्रे) जलधौ (जहितः) कृतनिवासः (तौग्र्यः) जलपदार्थः (कदा) कदापि (विधत्) किं कुर्यात्, कदापि न ॥२२॥