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अ॒भि प्र व॑: सु॒राध॑स॒मिन्द्र॑मर्च॒ यथा॑ वि॒दे । यो ज॑रि॒तृभ्यो॑ म॒घवा॑ पुरू॒वसु॑: स॒हस्रे॑णेव॒ शिक्ष॑ति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi pra vaḥ surādhasam indram arca yathā vide | yo jaritṛbhyo maghavā purūvasuḥ sahasreṇeva śikṣati ||

पद पाठ

अ॒भि । प्र । वः॒ । सु॒ऽराध॑सम् । इन्द्र॑म् । अ॒र्च॒ । यथा॑ । वि॒दे । यः । ज॒रि॒तृऽभ्यः॑ । म॒घऽवा॑ । पु॒रु॒ऽवसुः॑ । स॒हस्रे॑णऽइव । शिक्ष॑ति ॥ ८.४९.१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:49» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:14» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:1


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शिव शंकर शर्मा

यहाँ से सोमवाच्येश्वर प्रार्थना कही जाती है।

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सर्वप्रिय देव महेश ! (पितृभिः) परस्पर रक्षक परमाणुओं के साथ (संविदानः) विद्यमान (त्वम्) तू (अनु) क्रमशः (द्यावापृथिवी) द्युलोक और पृथिवीलोक प्रभृति को (आततन्थ) बनाया करता है। (इन्दो) हे जगदाह्लादक ईश ! (तस्मै+ते) उस तेरी (हविषा) हृदय से और नाना स्तोत्रादिकों से (विधेम) सेवा करें। आपकी कृपा से (वयम्+रयीणाम्+पतयः+स्याम) हम सब धनों के अधिपति होवें ॥१३॥
भावार्थभाषाः - वेद की एक यह रीति है कि भौतिक पदार्थों का वर्णन कर उसी नाम से अन्त में ईश्वर की प्रार्थना करते हैं, अतः अगले तीन मन्त्रों से ईश्वर की प्रार्थना का विधान है ॥१३॥
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शिव शंकर शर्मा

अतः परं सोमवाच्येश्वरप्रार्थना।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सोम=सर्वप्रिय परमदेव ! त्वम्। पितृभिः=रक्षकैः परमाणुभिः सह। संविदानः=संगच्छमानः। अनु=कर्मेण। द्यावापृथिवी। आततन्थ=विस्तारितवान्। अन्यत्स्पष्टम् ॥१३॥