विश्वे॑षामिर॒ज्यन्तं॒ वसू॑नां सास॒ह्वांसं॑ चिद॒स्य वर्प॑सः । कृ॒प॒य॒तो नू॒नमत्यथ॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
viśveṣām irajyantaṁ vasūnāṁ sāsahvāṁsaṁ cid asya varpasaḥ | kṛpayato nūnam aty atha ||
पद पाठ
विश्वे॑षाम् । इ॒र॒ज्यन्त॑म् । वसू॑नाम् । स॒स॒ह्वांस॑म् । चि॒त् । अ॒स्य । वर्प॑सः । कृ॒प॒ऽय॒तः । नू॒नम् । अति॑ । अथ॑ ॥ ८.४६.१६
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:46» मन्त्र:16
| अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:4» मन्त्र:1
| मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:16
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह इन्द्र नामक ईश्वर (नः) हमारे (वाजेषु) सांसारिक और आध्यात्मिक आदि विविध संग्रामों में (अविता) रक्षक (भुवत्) हो, जिसके (पुरूवसुः) बहुत धन हैं, (पुरः स्थाता) जो सबके आगे खड़ा होनेवाला है अर्थात् जो सर्वत्र विद्यमान है। (मघवा) जिसका नाम ही धनवान् धनस्वामी है, जो (वृत्रहा) निखिल विघ्नों का प्रहारी है, वह हमारा रक्षक और पूज्य होवे ॥१३॥
भावार्थभाषाः - वही संकट में भी रक्षक है, वही धनस्वामी है। उसी की स्तुति, प्रार्थना करो ॥१३॥
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - स इन्द्रवाच्येश्वरः। नोऽस्माकम्। वाजेषु= सांसारिकाध्यात्मिकादिसंग्रामेषु। अविता=रक्षिता। भुवत्=भवतु। यः पुरूवसुः=बहुधनः। पुनः। पुरः स्थाता=सर्वेषामग्रे स्थाता=विद्यमानः। पुनः। मघवा=धनस्वामी। पुनः। वृत्रहा=निखिलविघ्नप्रहारी वर्तते ॥१३॥