आ त॑ ए॒ता व॑चो॒युजा॒ हरी॑ गृभ्णे सु॒मद्र॑था । यदी॑न ब्र॒ह्मभ्य॒ इद्दद॑: ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
ā ta etā vacoyujā harī gṛbhṇe sumadrathā | yad īm brahmabhya id dadaḥ ||
पद पाठ
आ । ते॒ । ए॒ता । व॒चः॒ऽयुजा॑ । हरी॒ इति॑ । गृ॒भ्णे॒ । स॒मत्ऽर॑था । यत् । ई॒म् । ब्र॒ह्मऽभ्यः॑ । इत् । ददः॑ ॥ ८.४५.३९
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:45» मन्त्र:39
| अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:49» मन्त्र:4
| मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:39
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - (प्रभुवसो) हे समस्तसम्पत्तिसंयुक्त महेश ! मैं (सख्युः) अपने मित्रगण की (शूनम्) न्यूनता का (मा+आविदे) बोध न करूँ तथा (पुत्रस्य) पुत्र की न्यूनता का बोध (मा) मैं न करूँ, ऐसी कृपा आप करें। (ते+मनः) आपका मन (आवृत्वम्) इस मेरी प्रार्थना की ओर आवे ॥३६॥
भावार्थभाषाः - प्रत्येक आदमी को उतना उद्योग अवश्य करना चाहिये, जिससे कि वह अपने गृह तथा मित्र-वर्ग को सुखी रख सके। अनुद्योगी और आलसी पुरुष ही ईश्वर के राज्य में क्लेश पाते हैं। देखो, निर्बुद्धि परन्तु परिश्रमी पक्षिगण कैसे प्रसन्न रहते हैं ॥३६॥
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! मम सख्युः=मित्रस्याहम्। शूनम्=शून्यं न्यूनताम्। मा+आविदे=न जानीयाम्। हे प्रभुवसो=बहुधनम् ! पुत्रस्य। शूनम्। मा+आविदे। ते तव मनः। आवृत्वत्=आवर्त्तताम् ॥३६॥