वांछित मन्त्र चुनें

मा सख्यु॒: शून॒मा वि॑दे॒ मा पु॒त्रस्य॑ प्रभूवसो । आ॒वृत्व॑द्भूतु ते॒ मन॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā sakhyuḥ śūnam ā vide mā putrasya prabhūvaso | āvṛtvad bhūtu te manaḥ ||

पद पाठ

मा । सख्युः॑ । शून॑म् । आ । वि॒दे॒ । मा । पु॒त्रस्य॑ । प्र॒भु॒व॒सो॒ इति॑ प्रभुऽवसो । आ॒ऽवृत्व॑त् । भू॒तु॒ । ते॒ । मनः॑ ॥ ८.४५.३६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:45» मन्त्र:36 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:49» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:36


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! (यत्) जो आप कृपा कर (नः) हम उपासक जनों को (मृळयासि) सब प्रकार से सुखी रखते हैं, (ताः) वे (तव+इत्+उ) आपकी ही (सुकीर्त्तयः) सुकीर्तियाँ (असन्) हैं (उत) और आपकी ही (प्रशस्तयः) प्रशंसाएँ हैं ॥३३॥
भावार्थभाषाः - विस्पष्ट ऋचा को भी भाष्यकार और टीकाकार कठिन बना देते हैं। इस ऋचा का अर्थ विस्पष्ट है। इन्द्र के निकट निवेदन किया जाता है कि आप जो हमको सुखी करते हैं, वह आपकी कृपा सुकीर्ति और प्रशंसा है ॥३३॥
टिप्पणी: इसका द्वितीय अर्थ इस प्रकार भी हो सकता है कि (यद्) यदि आप (नः+मृळयासि) हमको सुखी बनावें, तो (ताः) वे (तव+इत्) आपकी ही (सुकीर्तयः+असन्) सुकीर्तियाँ होंगी या होवें, आपकी ही (प्रशस्तयः) प्रशंसाएँ होंगी ॥३३॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! यत्त्वम्। नोऽस्मान्। मृळयासि=सुखयसि। ताः। तवेद्=तवैव। सुकीर्त्तयः। असन्=सन्ति। उत तवैव प्रशस्तयः=प्रशंसाः ॥३३॥