मा न॒ एक॑स्मि॒न्नाग॑सि॒ मा द्वयो॑रु॒त त्रि॒षु । वधी॒र्मा शू॑र॒ भूरि॑षु ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
mā na ekasminn āgasi mā dvayor uta triṣu | vadhīr mā śūra bhūriṣu ||
पद पाठ
मा । नः॒ । एक॑स्मिन् । आग॑सि । मा । द्वयोः॑ । उ॒त । त्रि॒षु । वधीः॑ । मा । शू॒र॒ । भूरि॑षु ॥ ८.४५.३४
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:45» मन्त्र:34
| अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:48» मन्त्र:4
| मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:34
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) परमैश्वर्य्यशालिन् परमोदार देव ! (मन्दानः) स्तुतिपाठकों के ऊपर प्रसन्न होकर उनको देने के लिये (यद्+दधिषे) जो वस्तु रखते हैं अथवा (मनस्यसि) करने का मन में निश्चय करते हैं यद्वा (प्र+इयक्षसि+इत्) जो वस्तु देही देते हैं। (तत्+मा+कः) वे सब आप करें या न करें, किन्तु (मृळय) हमको सब तरह से सुखी बनावें ॥३१॥
भावार्थभाषाः - इसका आशय यह है कि हमारे लिये आपको अनेक क्लेश उठाने पड़ते हैं। हम आपसे सदा माँगते रहते हैं, आप यथाकर्म उसे देते रहते हैं। यह सब न करके आप केवल हमारे लिए उतना कीजिये, जिससे हम सुखी रहें ॥३१॥
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! मन्दानः=स्तुतिपाठकान् प्रति प्रीतः सन्। यद् वस्तु त्वं दधिषे=धारयसि। यन्मनस्यसि=कर्त्तुं मनसि अवधारयसि। यद्वा यदपि। प्र+इयक्षसि=इत्=प्रयच्छसि एव ॥३१॥